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________________ लघ्वर्हन्नीति भिन्द्यात् प्राकारपरिखादुर्गादींश्च तडागकम्। शक्तिहीनविधायैनं घातयेत्सहचारिणः॥६४॥ शत्रु के द्वारा निर्मित कोट, खाइयों, दुर्ग तथा तालाब का विध्वंस करना चाहिए। शत्रु को शक्तिहीन कर उसके सहयोगियों को मार डालना चाहिए। भेदयेन्निखिलान्तस्य सचिवादींश्च वंशजान्। सुमुहूर्ते च भूपालः स्वाज्ञां तत्र प्रवर्तयेत्॥६५॥ शत्रु पक्ष के सभी मन्त्री आदि के वंशजों को फोड़कर अर्थात् अपने पक्ष में मिलाकर शुभ मुहूर्त में राजा अपनी आज्ञा प्रवर्तित करे। देवान गुरूंश्च संपूज्य दानं दत्वा बहुवसु। ख्यापयेदभयं तेषां ये पूर्वनृपसेवकाः॥६६॥ देवों व गुरुओं की सम्यक् पूजा कर, प्रचुर धन दान देकर, पूर्व राजा के सेवकों की सुरक्षा की घोषणा करनी चाहिये। विदित्वैषां समासेन सर्वेषां तु चिकीर्षितम्। तद्वंश्यं स्थापयेत्तत्र चेदाज्ञाभक्तितत्परः॥६७॥ पारितोषिकदानेन तं सन्तोष्य भुवःपतिः। स्वशासनं स्थिरीकुर्यान्नियमादिप्रबन्धतः॥१८॥ सभी इच्छुक व्यक्तियों का सामूहिक रूप से विचार जानकर पूर्व राजा के आज्ञा पालन करने वाले और स्वामिभक्त वंशज को राज्य पर स्थापित करना चाहिये। विजयी राजा नियुक्त राजा को पुरस्कार के द्वारा सन्तुष्ट कर नियम आदि के प्रबन्ध द्वारा अपनी सत्ता को सुदृढ़ करे। (वृ०) अथ जये जाते पौरुषप्राप्तधनं स्वामिना योधेभ्यः किं देयमित्याह - इसके अनन्तर विजय प्राप्त होने पर पराक्रम से प्राप्त धन को राजा द्वारा योद्धाओं को किस प्रकार देना चाहिये, इसका कथन -. जये जाते नृपो दद्याद्योद्धृभ्यो नितरां धनम्। धान्याजागोमहिष्यादि यो यत्प्राप्नोति तस्य तत्॥६९॥ स्यन्दनाश्वगजामोघरत्नकुप्यपशुस्त्रियः । भटै शेर्पणीयाश्च रणे प्राप्ताः स्वपौरुषात्॥७०॥ एवं पूर्वोक्तविधिना जयं प्राप्य सुविस्तृत-। यशःसम्पूर्णभूचक्रः राजेन्द्रो भूविश्रुतः॥७१॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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