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________________ १. द्वितीय अधिकार अथ क्रमप्राप्तदण्डनीतिप्रकरणमारभ्यते इसके बाद क्रमागत दण्डनीतिप्रकरण का आरम्भ किया जाता है प्रणम्य परमा' भक्त्या सम्भवं श्रुतसम्भवम् । प्रजानामुपकाराय दण्डनीतिः प्रचक्ष्यते ॥१॥ आगम शास्त्र के प्रणेता (तीसरे तीर्थङ्कर) सम्भवनाथ की परम भक्ति पूर्वक वन्दना कर प्रजा के उपकार के लिए दण्डनीति का कथन किया जाता है। तत्र जैनागमे दण्डनीतयः सप्तधा स्मृताः । ताः स्युर्हाकारमाकारधिक्काराः परिभाषणम् ॥२॥ मण्डले बन्धनं काराक्षेपणं चाङ्गखण्डनम् । अष्टमो द्रव्यदण्डोऽपि स्वीकृतो नीतिकोविदैः ॥३॥ परिभाषणमाक्षेपान् मागा इत्यादि शंसनम् । सरोध इङ्गिते क्षेत्रे मण्डले बन्ध उच्यते ॥४॥ जैन आगम (स्थानाङ्गसूत्र) में दण्डनीति सात प्रकार की कही गयी है, वे (इस प्रकार ) हैं १. हक्कार, २. मक्कार, ३. धिक्कार, ४. निन्दा, ५. मण्डल बन्धन, ६. कारागार में रखना और ७ अङ्ग भङ्ग । ( इसके अतिरिक्त) नीतिवेत्ताओं द्वार आठवाँ अर्थ दण्ड भी स्वीकार किया गया है । निन्दा और झिड़की सहित 'मत जाओ' इत्यादि आदेश और नियत क्षेत्र (मण्डल) में (अपराधकर्त्ता को) रोकना मण्डल बन्ध कहा जाता है। - २.२ दण्डनीतिप्रकरणम् - - - (वृ०) यदुक्तं स्थानाङ्गसूत्रे सत्तविहा दंडनीई पणत्ता तं जहा हक्कारे १ मक्कारे २ धिक्कारे ३ परिभासे परया भ १, भ २ प १, प २ ।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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