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________________ लघ्वर्हन्नीति देव, गुरु, ब्राह्मण, कुल के ज्येष्ठ और साधुओं के अतिरिक्त आप अन्य किसी की वन्दना न करें। न स्पृष्टं क्वापि भोक्तव्यं नान्येन सह भोजनम्। न श्राद्धभोजनं कार्यं भोक्तव्यं नान्यवेश्मनि॥३२॥ (राजा को) न ही किसी के द्वारा भी स्पर्श किया हुआ और न ही दूसरे के साथ भोजन करना चाहिए, न ही श्राद्ध (पितृ क्रियाकर्म) भोजन करना चाहिए और न ही किसी के घर में भोजन करना चाहिए। अगम्यास्पृश्यनारीणां विधेयो नैव सङ्गमः। परेण धारितं वस्त्रं नो धार्यं भूषणं तथा॥३३॥ (राजा को) गमन न करने योग्य, स्पर्श के अयोग्य (अछूत) नारियों के साथ सम्पर्क या मैथुन नहीं करना चाहिए, दूसरों के द्वारा धारण किये गये वस्त्र तथा आभूषण नहीं धारण करना चाहिए। शयनं परशय्यायामासनं च परासने। परपात्रे भोजनं च वर्जयेः सर्वदा नृपः॥३४॥ राजा दूसरे की शय्या पर शयन, दूसरे के आसन पर बैठने तथा दूसरे के पात्र में भोजन का सर्वदा त्याग करे। नैवारोप्या गुरून्मुक्त्वा स्वशय्यासनवाजिषु। स्वे रथे वारणे चैव पर्याणे क्रोड एव च॥३५॥ अपनी शय्या, आसन, घोड़े, रथ, हाथी आदि पर गुरुओं के अतिरिक्त किसी को न बिठाये। काञ्जिकर क्वथितान्नं च यवानं तैलमेव च। न भोक्तव्यं क्वचिद्राज्ञा पञ्चोदुम्बरजं फलम्॥३६॥ - इति नृपाणाम् नियमशिक्षाः।। काञ्जी (खट्टा पेय-विशेष), क्वथित (धीमी आँच पर उबाला हुआ) अन्न, जौ, तेल और उदुम्बर (गूलर) जाति के पाँच फलों का राजा को कभी भी आहार नहीं करना चाहिए। अपराधसहस्त्रेऽपि योषिद्विजतपस्विनाम्। न वधो नाङ्गविच्छेदस्तेषां कार्याः प्रवासनम्॥३७॥ १. २. वर्जये प २॥ काजिकं भ १॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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