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________________ भूपालादिगुणवर्णनम् हजार अपराध होने पर भी स्त्री, ब्राह्मण तथा तपस्वियों का वध और न ही अङ्ग-भङ्ग करना चाहिए बल्कि उनका देश से निर्वासन करना चाहिए। देवद्विजगुरूणां च लिङ्गिनां च सदैव हि। अभ्युत्थाननमस्कारप्रभृत्या मानमाचर॥३८॥ देव, ब्राह्मण, गुरु और साधुओं (के आगमन पर) अपने आसन से खड़े होकर (अभ्युत्थान), नमस्कार आदि के द्वारा सदैव उनका समादर करना चाहिए। धर्मार्थकामान् सन्दध्या अन्योऽन्यमविरोधितान्। . पालयस्व प्रजाः सर्वाः स्मृत्वा स्मृत्वा क्षणे क्षणे॥३९॥ धर्म, अर्थ और काम को परस्पर विरोध के विना साधना चाहिए। प्रत्येक क्षण सभी प्रजाजनों का स्मरण कर उनका पालन करना चाहिए। मन्त्रिभिः सेवकैश्चैव पीड्यमानाः प्रजा नृप। .. क्षणे क्षणे पालयेथाः प्रमादं तत्र माचर॥४०॥ हे राजन्! मन्त्रियों और सेवकों द्वारा पीड़ित की जाती हुई प्रजा की रक्षा प्रत्येक क्षण करनी चाहिये, इसमें रञ्चमात्र भी आलस्य नहीं करो। दण्ड्या न लोभतः केचिन्न क्रोधान्नाभिमानतः। दोषानुसारिदण्डश्च विधेयः सर्वदा त्वया॥४१॥ हे राजन्! लोभ, क्रोध और अभिमान के कारण किसी को दण्डित नहीं करना चाहिए बल्कि तुम्हारे (राजा) द्वारा सदा दोष के अनुसार दण्ड देना चाहिए। हित्वालस्यं सदा कार्यं नीत्या कोषस्य वर्द्धनम्। प्रजायाः पालनं नीत्या नीत्या राष्ट्रहितं पुनः॥४२॥ आलस्य छोड़कर सदा नीति द्वारा कोष की वृद्धि करना चाहिए। नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करना चाहिए, पुनः नीति से ही राष्ट्रहित करना चाहिए। कदापि न हि मोक्तव्यो नीतिमार्गो हितेच्छुभिः। स्यान्यायवजितो भूप इहामुत्र च दुःखभाक्॥४३॥ अपना हित चाहने वाले राजाओं द्वारा कभी भी नीतिमार्ग का त्याग नहीं करना चाहिए। न्यायगुण से वञ्चित राजा इस लोक और परलोक में दुःख का भागी होगा। यदुक्तम् - जैसा कि कहा गया है - दुष्टदण्डः सुजनस्य पूजा न्यायेन कोशस्य च सम्प्रवृद्धिः। अपक्षपातो रिपुराष्ट्ररक्षा पञ्चैव यज्ञाः कथिता नृपाणाम्॥४४॥ १. दुष्टस्यदण्डः प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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