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________________ (xxvi) नृपतेः परमो धर्मः स्वप्रजापालनं सदा । -३.१६.२ जिस प्रकार गाय अपने बछड़े का पालन करती है उसी प्रकार प्रीतिपूर्वक राजा को भी अपनी प्रजा का पालन करना चाहिए - गौर्वत्समिव भूपोऽपि प्रीत्या स्वाः पालयेत्प्रजाः । -३.३.११ राजा के लिये आचार्य का उपदेश है कि वह सज्जन पुरुषों का पालन करता हुआ एवं दुष्टों का निग्रह (दण्डित) करता हुआ देव, दानव और मनुष्य सभी योनि के लोगों द्वारा पूजा जाता है - शिष्टानां पालनं कुर्वन् दुष्टानां निग्रहं पुनः। पूज्यते भुवने सर्वैः सुरासुरनृयोनिभिः॥३.१९.६॥ आचार्य के अनुसार राजा को अपने सगे सम्बन्धियों को भी अपराध हेतु दण्डित करना चाहिये। यदि पत्नी, पुत्र, दूत, दास, सहोदर (भ्राता), चौरकर्म के अपराधी हों तो राजा द्वारा नाथ (बैल की नाक में पिरोई जाने वाली रस्सी और) दण्ड से उनकी पिटाई हो - भार्यापुत्रप्रेष्यदाससोदराश्चापराधिनः । तेषां नाथेन दण्डेन स्तैन्यकर्मणि भूभृता॥३.१८.२५॥ समाज में अपराध पर नियन्त्रण और प्रजा की सुरक्षा के लिये राजा से अपेक्षित है कि वह अपराध घटित होने पर भुक्तभोगी द्वारा अपराध की सूचना न देने पर भी स्वयं संज्ञान लेकर अपराधी को दण्ड दे। मुख्य लक्ष्य समाज को अपराध मुक्त रखना है चाहे उसके लिये जो भी कदम उठाना पड़ें। एताः सत्त्वेऽभियोगस्यासत्त्वे चापि महीभुजा। प्रयुज्यन्ते प्रजास्थित्यै यथादोषं दुरात्मसु॥२.२.५॥ अर्थात् ये दण्डनीतियाँ आरोपी के विरुद्ध अभियोग दोषारोपण सामने लाये जाने पर और न लाये जाने पर भी राजा द्वारा प्रजा की रक्षा हेतु दुष्टों के अपराध के अनुसार प्रयोग की जाती हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के व्यक्ति एवं राजा एवं समाज का उनके प्रति व्यवहार धर्मनिष्ठ, प्रतिभाशाली, पवित्र, लोभरहित, कार्यकुशल, आलस्यरहित, बहुशास्त्र वेत्ता, शुद्ध कुल वाला, सर्वमान्य और कार्य की चिन्ता करने वाला व्यक्ति सभा का कार्यभार ग्रहण करे। धर्मिणः प्रतिभायुक्ताः शुचयो लोभवर्जिताः। कार्यदक्षा निरालस्या बहुशास्त्रविशारदाः॥३.१३.९॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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