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________________ (xxvii) सर्वमान्याः कुलशुद्धाः माननीयं वचस्तेषां कार्यचिन्तासमाहिताः । सर्वैस्तद्व्यूहसंस्थितैः ॥१०॥ साथ ही समूह या पञ्च समिति में स्थित सदस्यों के हितवादी वचनों को दूसरे मनुष्यों को स्वीकार करना चाहिए। इसके विपरीत ( न मानने वालों को) अधम दण्ड से दण्डित करना चाहिये हितवादिवचो मान्यं समूहे तत्स्थितैः परैः । विपरीतो हि दण्ड्यः स्याज्जघन्येन दमेन च । ३.१३.६॥ पर्यावरण सुरक्षा आचार्य हेमचन्द्र ने पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले कृत्यों के लिये कठोर दण्ड का विधान किया है जो निम्नलिखित श्लोकों से स्पष्ट है - आरामं गच्छता येन दर्पादुत्पाटिता लता। त्वक्पत्रदण्डपुष्पाद्याः स दण्ड्यो दशराजतैः ३.१८.८ अर्थात् उपवन की ओर जाते हुए धृष्टता से जिसके द्वारा लता उखाड़ी गई हो, वृक्ष की छाल, पत्ते, डाली, फूल आदि तोड़ा गया हो वह दस रजत मुद्राओं से दण्डनीय है। इससे स्पष्ट है कि वनस्पति आदि को क्षति पहुँचाना गम्भीर अपराध था। पत्ते और फूल तोड़ना भी भारी दण्ड का कारण बनता था। यही नहीं वृक्ष काटने वाले को नगर से निष्कासित करने का विधान था - प्रवास्योवृक्षभेदकः - ३.१८.९ वर्तमान समय में भी यदि वनस्पति को क्षति पहुँचाने पर इसके समान कठोर दण्ड दिया जाय तो वृक्ष आदि की सुरक्षा बढेगी और फलतः हमारा पर्यावरण भयावह विनाश से मुक्त हो सकेगा। पुत्र-पुत्री उत्पन्न होने के कारण-आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार सम (संख्या वाली) रात्रि में गर्भ धारण हो तो पुत्र और विषम (संख्या वाली) रात्रि में गर्भ धारण हो तो कन्या, वीर्य की अधिकता से पुत्र तथा रक्त की अधिकता होने से पुत्री उत्पन्न होती है समायां निशि पुत्रः स्याद्विषमायां तु कन्यका । वीर्याधिक्येन पुत्रः स्याद्रक्ताधिक्येन पुत्रिका ॥३.१९.१६॥ वाहन दुर्घटना आचार्य हेमचन्द्र द्वारा वाहन दुर्घटना से सम्बद्ध दण्ड में चालक की कुशलता - अकुशलता को केन्द्र बनाया गया है। वाहन चालक के मूर्ख या अकुशल
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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