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________________ दण्डपारुष्यप्रकरणम् १८७ वैश्य और शूद्र बैठें तो न्यायपूर्वक मर्यादा की रक्षा के लिए राजा द्वारा वैश्य को बीस और शूद्र को पचास कोड़े लगवाना चाहिए। चतुर्वर्णेषु यः कश्चिदृष्ट्वा कञ्चिन्नरोत्तमम्। निष्ठीवति हसेद्वापि दम्यते दशराजतैः॥५॥ चार वर्गों में से जो कोई (पुरुष) किसी श्रेष्ठ व्यक्ति को देखकर थूके अथवा हँसे भी तो (राजा) दस रजत मुद्राओं द्वारा उसे दण्डित करे। प्राणघाताभिलाषी यो ग्रीवां मुष्क शिरस्तथा। गृह्णाति दर्पतः क्रोधाद्दण्ड्यते स्वर्णनिष्कतः॥६॥ घमण्ड या क्रोध से वध की इच्छा से जो किसी की गर्दन, मुष्क (अण्डकोष) तथा सिर पकड़े तो उसे सोने के (सिक्के) निष्क से दण्डित किया जाता है। "मांसापकर्षकस्तुर्यैस्त्वग्भेत्ता दशराजतैः। ६असृक्प्रचालने विप्रो दण्ड्यो युग्मशतेन वै॥७॥ ब्राह्मण को (किसी का) माँस खींचने पर चार (रजत मुद्राओं), चमडा काटने पर दस रजत (मुद्राओं) तथा रक्त बहाने पर दो सौ मुद्राओं से दण्डित करना चाहिए। आरामं गच्छता येन दर्पादुत्पाटिता लता। त्वक्पत्रदण्डपुष्पाद्याः स दण्ड्यो दश सजतैः॥८॥ उपवन की ओर जाते हुए धृष्टता से जिसके द्वारा लता उखाड़ी गई हो, (वृक्ष की) छाल, पत्ते, डाली, फूल आदि (तोड़ा गया हो) वह दस रजत (मुद्राओं) से दण्डनीय है। पुष्पचौरो दशगुणैः प्रवास्यो वृक्षभेदकः। मनुष्यगोप्रहर्ता च प्रवास्यो ग्रामतो धुवम्॥९॥ १. हसेच्चापि भ २॥ २. शर भ २॥ ३. क्रोधा भ२॥ ४. ०दम्यते भ १, भ २, प १, प २।। ५. स्व र्णा० भ २॥ ६. ०रसक भ १, भ २, प १, प २॥ ७. राजनैः भ १, भ २, प १॥ ८. चौरौ प१॥ ९. प्रवास्यौ प १॥ १०. भेदके प १॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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