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________________ स्तैन्यप्रकरणम् मित्रतावश, लोभवश और दूसरे के कहने (सिफारिश) पर यदि राजा तथ्य से भिन्न व्यवहार करता है तो राजा इस लोक में भारी अपयश पाता है और परलोक में नरक में जाता है। गुरुधर्म्यात्मवृद्धस्त्रीबालघातोद्यतं नरम्। तस्करं प्रेक्ष्य चेच्छस्त्रं धारयेत् ब्राह्मणः खलु ॥३०॥ न तदा दोष' भाक् सः स्यादाततायिनिवारणे । धर्मस्त्याज्यो न हि प्राणान् संहरेत् घातकारिणः ॥३१॥ गुरु, धर्मात्मा, वृद्ध, स्त्री, बालक की हत्या को उद्यत मनुष्य ( एवं ) चोर को देखकर यदि ब्राह्मण शस्त्र धारण करे, आततायी के निवारण में (शस्त्र उठाने पर भी वह ब्राह्मण) दोष का भागी नहीं होता । आक्रामक के प्राण हर ले परन्तु (रक्षा) धर्म का त्याग न करे । १. २. एवं स्तैन्यादिदुःखेभ्यो रक्षणीयाः प्रजाः सदा । यतः स्वस्थाः प्रजाः सर्वाः भवेयुर्धर्मतत्पराः ॥ ३२ ॥ १७७ इस प्रकार चोरी आदि दुःखों से प्रजा सदा रक्षा करने योग्य है जिससे सभी प्रजा स्वस्थ रहकर धर्म में तल्लीन हो । इत्थं समासतः प्रोक्तं स्तैन्यप्रकरणं वरम्। ज्ञेयो विशेषश्चैतस्य श्रुतपाथोधिमध्यतः॥३३॥ इस प्रकार संक्षेप में स्तैन्य प्रकरण कहा गया, इससे विशेष (यदि जानना है) तो उस शास्त्र समुद्र (बृहदर्हन्नीति) के मध्य से जानना चाहिए । ॥ इति स्तैन्यप्रकरणम् सम्पूर्णम् ॥ —0— भासस्यादाततायि भ १, भ २ प १ प २ ॥ विशेषएतस्य भ १, भ २, प१, प२॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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