SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय अधिकार ३.१७ साहसप्रकरणम् नत्वा श्रीसुव्रतं देवं दःखानलपयोधरम्। राजनीत्यनुसारेण वक्ष्ये साहसिकं क्रमम्॥१॥ दुःख रूप अग्नि (को शान्त करने में) बादल रूप भगवान् तीर्थङ्कर सुव्रतनाथ की वन्दना कर राजनीति के अनुसार ‘साहस (अपराध) प्रकरण' का वर्णन करूँगा। (वृ०) पूर्वप्रकरणे स्तैन्यदण्डो वर्णितस्तत्साहचर्यादत्र च साहसदण्डोऽभिधीयते अथसाहसस्वरूपमाह - पूर्व प्रकरण में स्तैन्यदण्ड का वर्णन किया गया उससे सम्बन्धित होने से साहसदण्ड का कथन किया जाता है। साहस के स्वरूप का वर्णन - मनुजैः सहसाकर्म क्रियते क्रोधतोऽर्थतः। आपदां पदमित्येतत्साहसं सद्भिरुच्यते॥२॥ त्रिधा तल्लघुमध्योत्तमादिभेदैर्बुधैः स्मृतम्। एतस्य विस्तृति वृद्धार्हन्नीतौ समुदाहृता॥३॥ मनुष्य द्वारा क्रोधवश अथवा धन के लिए साहस (अपराध) कार्य किया जाता है। यह साहस सज्जनों द्वारा सङ्कट का स्थान कहा गया है। विद्वानों द्वारा साहस कर्म लघु, मध्यम तथा उत्तम - तीन भेद वाला कहा गया है। इसका विस्तार बृहदहन्नीति में निरूपित है। क्रियापेक्षो हि दण्डोऽयं त्रिविधस्त्रिषु वर्णितः। चन्द्रबाणवृषैरौप्यैः शतैर्वाल्पस्ततो भवेत्॥४॥ तीनों प्रकार के आपराधिक कार्यों में अपराध के अनुरूप एक सौ, पाँच सौ अथवा हजार मुद्राओं का अथवा उससे कम दण्ड होना चाहिए। १. ०ध्योतमा प २॥ २. बृद्धार्ह० प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy