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________________ १७६ लघ्वर्हन्नीति घर में सेंध देकर जो बलपूर्वक धन चोरी करता है (उस चोर से) धन के स्वामी को धन दिलाकर (उस चोर को) नगर से निर्वासित करना चाहिये। यश्च जैनोपवीतादिकृतसूत्राणि संहरेत्। संस्कृतानि नृपस्तं तु मासैकं बन्धके न्यसेत्॥२३॥ जो (मनुष्य जैन विधि से संस्कार कृत सूत्रों को चुराता है राजा द्वारा उसे एक मास तक बन्धन में रखना चाहिये। भार्यापुत्रसुहृन्मातृपितृशिष्यपुरोहिताः । स्वधर्मविच्युता दण्ड्याः परं वाचा नृपेण वै॥२४॥ (यदि) पत्नी, पुत्र, मित्र, माता, पिता, शिष्य और पुरोहित, अपने धर्म से । विचलित हों तो राजा द्वारा उन्हें वाचिक दण्ड देना चाहिये। लोभतो मोचयेद् बद्धान् यो मुक्तान् बन्ध'येन्नरान्। दासदास्यादिहर्ता च प्रवेश्यस्तस्करालये॥२५॥ स्तेनोपद्रवतो भूपः प्रजा रक्षति यः सदा। यशोऽत्र प्राप्नुयाल्लोके परत्र स्वर्गगत च सः॥२६॥ बन्दीगृह अधिकारी (यदि) लोभवश बन्दियों को मुक्त कर दे और मुक्त बन्दियों को बन्दी बना ले और दास-दासियों की चोरी करने वाले को कारागार में डाले। जो राजा चोर के उपद्रव से सदा प्रजा की रक्षा करता है वह इस लोक में यश प्राप्त करता है और दूसरे लोक में वह स्वर्ग प्राप्त करता है। वाचा दुष्टस्तस्करश्च मायावी विप्रलुञ्चकः। . धाटी मारण कर्ता यो धाटीनां च निवासदः॥२७॥ तस्कराणां लुण्ठकानां द्यूतादिग्रसितात्मनाम्। अशनस्थानदाता च दण्ड्यः कारागृहार्हकः॥२८॥ अशिष्टभाषी, चोर, कपटी, ठग, हमलावर और हत्यारे (आदि अप- राधियों को) निवास देने वाले और चोर, लुटेरे, द्यूतादि के व्यसनी लोगों को भोजन तथा स्थान देने वाले कारागार में (रखने के) दण्ड के पात्र हैं। मैत्र्याल्लोभात्परोक्त्या चेदन्यथा कुरुते नृपः। अयशोऽत्रमहदाप्नोति परत्र नरकं व्रजेत्॥२९॥ १. २. ३. ० येन्नरो भ १, भ २, प १, प २॥ कर्ता भ १, प १, प २॥ नृपो भ १, प १, प २।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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