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________________ स्तैन्यप्रकरणम् १७५ निधापयेद्वन्दिगृहे यत्र न स्याच्च दर्शनम्। अन्यस्य लेखनं कारयित्वा तं च विमोचयेत्॥१७॥ (राजा) मानवों के शिशु और कन्या तथा अनुपम रत्नों के चुराने पर चोर को बन्दीगृह में रखे, तीन वर्ष तक वहाँ (बन्दीगृह में) रखकर साक्षी के साथ मुक्त करना चाहिए। दुबारा चोरी करने पर पुनः उसे छः वर्ष तक बन्दीगृह में (इस प्रकार) रखना चाहिए जिससे वह कुछ देख न सके। (छः वर्ष बीत जाने पर) किसी दूसरे से लेख लिखाकर अर्थात् दूसरे के लिखित दायित्व पर उसे छोड़ना चाहिए। शास्त्रौषधिगवाश्वानां हर्ता भूपेन पीड्यते। गृहीत्वा तद्धनं तस्मात्स्थाप्यो कारागृहे पुनः॥१८॥ राजा द्वारा शास्त्र, औषधि, गाय और घोड़ों की चोरी करने वाले को चोरी गया वह धन उससे लेकर कारागार में बन्द कर देना चाहिये। गुडाज्यक्षीरदध्नां च सिता कसभस्मनाम्। लवणस्य मृदश्चैव मृद्भाण्डानां तथैव च॥१९॥ तैलमोदकपक्कानगुल्मवल्लीप्रसूनकम् । कन्दमूलच्छदादीनां च हर्ता 'वर्षत्रयं वसेत्॥२०॥ राजा द्वारा गुड़, घी, दूध, दही, शक्कर, कपास, भस्म, लवण, मिट्टी के पात्र, तेल, लड्डु, पक्वान्न, गुच्छ, लता, पुष्प, कन्दमूल तथा पत्रों की चोरी करने वाले को तीन वर्ष तक बन्दीगृह में रखना चाहिये। धान्यं हरन् कृषेर्दण्ड्यः सबन्धी भक्षणाय चेत्। सबन्धनत्वयोग्यः स्याच्चतुर्वर्णेषु कश्चन॥२१॥ चारों वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में से किसी की भी खेती का धान्य चोरी करने वाले को बन्दी बनाने के साथ दण्ड देना चाहिए। यदि खाने के (लिये चोरी किया हो तो केवल दण्ड देना चाहिए) बन्दी बनाने के साथ दण्ड अनुचित है। दत्वा तु खातकं गेहे द्रव्यं हरति यो हठात्। धनिने दापयित्वा स्वं तं च निर्वासयेत् पुरात्॥२२॥ १. निधाययेद् भ १, भ २, प २।। २. पुत्रस्याच्च० प २॥ ३. ०नस्य प २॥ कार्यास भ १, भ २, प १, प २॥ ५. ०तु सत्रयं भ १, भ २, प १, प २।। »
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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