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________________ १७४ जो (पुरुष) कुँए पर से रज्जु, घड़ा, वस्त्र चुरा ले जाता है उसे कोड़ों से मारकर उसी अवस्था में ग्राम से (बाहर) निर्वासित कर देना चाहिये। यो हरेत्कूपतो रज्जुं घटं वस्त्राणि स्तैन्यतः । ताडयित्वा कशाभिस्तं यथावस्थं विवासयेत्॥१०॥ लघ्वर्हन्नीति राजा को खेत में से चोरी से धान्य ले जाने वाले चोर से चुराई हुई (सामग्री) का दस गुना (दण्ड) प्राप्त करना चाहिये और उसे देश से निर्वासित कर देना चाहिये। १. २. ३. ४. स्तैन्यात् धान्यं हरन् क्षेत्रात्स्तेनो दण्डमवाप्नुयात् । स्तेयाद्दशगुणं भूपो देशान्निर्वासयेच्च तम् ॥११॥ ५. ६. जो शक्तिशाली राजा चोरी की घटना और प्रजा के दुःख को जानते एवं देखते हुए क्षमा करता है वह निश्चित रूप से दुर्गति को प्राप्त करता है। हिरण्यरजतादीनां भूषणानां च वाससाम्। हर्तुः प्रदापयेन्मूल्यं सर्वं तत्स्वामिने नृपः ॥१३॥ पुनःस्थापयेद्वन्दिगृहे वर्षत्रया 'वधि | तं लोना दाने तु चेदेकाब्दं यावत्तत्र संस्थितिः ॥ १४ ॥ जानंस्तस्करवृत्तान्तं प्रजादुःखं च शक्तिमान् । यः पश्यन् क्षमते भूपो ध्रुवं प्राप्नोति दुर्गतिम् ॥१२॥ राजा स्वर्ण, रजत आदि के आभूषणों तथा वस्त्रों के चोर से सम्पूर्ण मूल्य ( लेकर उस (वस्तु) के स्वामी को प्रदान करे और उस (चोर) को तीन वर्ष की अवधि तक कारागार में रखे । यदि चुराई हुई वस्तु (वह चोर) वापस कर देता है तो वहाँ (कारागार में) उसे एक वर्ष तक रखना चाहिए। मानवानामर्भकस्य कन्याया हरणेऽपि च। तथा 'नुपमरत्नानां चौरो 'बन्दिगृहं विशेत् ॥ १५ ॥ तत्र वर्षत्रयं स्थाप्यो मोचयेत्साक्षितस्तकम् । पुनः स्तेयस्य करणे वर्षषट्कावधिं पुनः ॥१६॥ भूषणानां भ १, भ २ प १ प २ में अनुपलब्ध। वर्षंजया० भ १, भ २, प१, प २ ॥ लोभ १, २, प १, लोत्प्र प २ ।। वेदैकांक्ष्यावक्षत्रतत्स्थिति: भ १, भ २ प २, चेदैकां० प १ ॥ ०नुयम० भ २ ॥ वन्दिगृ० भ २, वन्दिग् प २ ॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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