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________________ अस्वामिविक्रयप्रकरणम् १५३ यदि कोई स्वामी के जाने बिना दूसरे की वस्तु विक्रय करता है तो वह चोर के समान दण्डनीय है, वह (विक्रय से प्राप्त) धन राजा स्वामी को दिलाये। दायश्च विक्रयश्चापि स्वाम्यसत्त्वेऽन्यवस्तुनः। कृतोऽप्यकृत एव स्याद्व्यवहारविनिर्णये॥४॥ व्यवहार शास्त्र का निश्चित नियम है कि स्वामी की अनुपस्थिति में देने अथवा विक्रय की क्रियान्वित प्रक्रिया को भी अकृत (न किये हुये) की भाँति जानना चाहिए। (वृ०) ननु अल्पमूल्येन रहसि कालातिकमे रात्यादौ वा निर्धनान्महार्ध्यवस्तु गृह्णन् केतापि दण्डनीयः स्यादित्याह - एकान्त, अनुपयुक्त काल अथवा रात्रि आदि में निर्धन से कम मूल्य में बहुमूल्य वस्तु ग्रहण करने वाला क्रेता भी दण्डनीय है, इसका कथन - दीनान्महावस्तूनां क्रेताऽकाले रहस्यपि। अल्पमूल्येन गृह्णन्वा दस्युवद्दण्डभाग् भवेत्॥५॥ गरीब व्यक्तियों की अतिमूल्यवान वस्तुओं को कम मूल्य में कुसमय में या सुनसान स्थान में क्रय करने वाला व्यक्ति दस्यु की भाँति दण्ड का पात्र होता है। ___ (वृ०) ननु यदि धनी स्ववस्त्वन्यविक्रीत केतृहस्तगतं पश्येत् तदा कि कार्यमित्याह यदि धनवान् दूसरे को बेची गयी अपनी वस्तु को क्रय करने वाले के हाथ में देखे तो क्या करे, यह कथन - लब्ध्वा स्वमन्यविक्रीतं वेतृहस्तस्थितं धनी। तं ग्राहयेत्तलारक्ष स्वयमादाय वार्पयेत्॥६॥ स्वयं नहीं बल्कि दूसरे के द्वारा विक्रय की गई (अपनी) वस्तु क्रय करने वाले के हाथ में पाने पर धनी उसे तलारक्ष से पकड़वाये या स्वयं लेकर (तलारक्ष) को दे देवे। नष्टं चापहृतं वस्तु मदीयमिति साधयेत्। ततः केसापि शुद्धयर्थ विक्रेतारं प्रदर्शयेत्॥७॥ खोई हुई और घुराई हुई वस्तु को कोई 'मेरी है' ऐसा प्रमाणित कर दे तो क्रय करने वाले को भी शुद्धि के लिए विक्रेता को दिखाना चाहिए। ततो मूल्यं स आप्नोति शुद्धयेच्यापि न संशयः। यद्यशक्तस्तमानेतुं तदा साक्ष्यादिभिः क्रयम्॥८॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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