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________________ १५४ लघ्वर्हन्नीति दिव्येन वा शोधयित्वा वस्तु दत्वा गृहं व्रजेत्। क्रेतान्यथा तु दण्ड्यः स्याद्गृह्णीयाद्वस्तु तद्धनी॥९॥ तत्पश्चात् वह (क्रेता विक्रेता से) मूल्य प्राप्त करता है और स्वयं को निर्दोष सिद्ध करता है इसमें कोई संशय नहीं है। यदि (मूल्य को) विक्रेता से वापस लेने में असमर्थ हो तो साक्षी आदि अथवा शपथ से पवित्र कर क्रय की गई वस्तु को स्वामी को सौंप कर अपने घर जाये। अन्यथा क्रेता दण्ड का पात्र है और वस्तु स्वामी को ग्रहण करनी चाहिए। (वृ०) ननु वस्तुगवेषणानियुक्तेन वस्तुलाभे किं कर्त्तव्यमित्याह - . वस्तु की खोज हेतु नियुक्त व्यक्ति द्वारा वस्तु के प्राप्त हो जाने पर क्या करना चाहिए, यह कथन - . नष्टं चापहृतं वस्तु समासाद्य कथञ्चन। स वस्तुचोरं राजानं समर्प्य स्वं निजं वदेत्॥१०॥ खोई और चुराई गई वस्तु को किसी प्रकार प्राप्त कर उस वस्तु के चोर को राजा को सौंपकर वस्तु को अपनी बताये। (वृ०) यदि नो निवेदयेत् तर्हि सोऽपि नृपदण्ड्यः स्यादित्याह - यदि राजा को सूचित नहीं करता है तो वह भी राजा द्वारा दण्डनीय है इसका निरूपण - . यस्माल्लब्धं हृतं नष्टं तद्वत्तमनिवेद्य यः। भूपं स्वयं च गृह्णाति दण्ड्यः षण्णिधिभिः पणैः॥११॥ जिसके पास से चोरी गई (एवं) खोई हुई वस्तु प्राप्त हो इस वृत्तान्त को जो राजा को न सूचित कर स्वयं (वस्तुओं को) ग्रहण कर लेता है तो उसे (वस्तु के मूल्य का) छः गुना दण्ड देना चाहिए। (वृ०) ननु निःस्वामिकधने राजपुरुषहस्तगते का व्यवस्थेत्याहस्वामी रहित धन राजपुरुष को प्राप्त होने पर क्या व्यवस्था हो, यह कथन राजा निःस्वामिकमृक्थमात्र्यब्दं संनिधापयेत्। स्वाम्याप्तं तत्र शक्तस्तत्परतस्तु नृपः प्रभुः॥१२॥ राजा स्वामिविहीन वस्तु को तीन वर्षों तक संरक्षण में रखे उसके स्वामी के मिलने पर वह (स्वामी) सक्षम है अर्थात् वस्तु को प्राप्त करने का अधिकारी है। उस (अवधि) के पश्चात् तो राजा ही स्वामी है।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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