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________________ निक्षेपप्रकरणम् १४५ इसलिए (उन दुःख के कारणों के विद्यमान होने पर) परिवार के पोषण के लिए अथवा चोरी आदि के भी भय अथवा स्वयं व्यापार करने में असमर्थ होने या यात्रा के लिए तत्पर होने पर व्यक्ति अपना धन, धर्म के ज्ञाता, कुलीन, सत्यवादी और सदाचारी व्यक्ति के पास न्यास रूप में रखे। वह निक्षेप विधि सभी प्राणियों को सुख देने वाली कही गई है। वह निक्षेप समिष_(ब्याज सहित) और अमिष (ब्याज रहित) भेद से दो प्रकार का है। स तु भूयः कियत्काले निक्षेपं याचयेद्यदा। न तदा स्याद्विसंवादस्ततः शुद्धे विनिक्षिपेत्॥६॥ यावद् द्रव्यं च निक्षिप्तं तावद्देयाद्धनी पुनः। यथादानं तथादानं येन प्रीतिः सदा तयोः ॥७॥ वह (न्यास रखने वाला) जब कुछ काल के पश्चात् निक्षेप को (वापस) माँगे तब कलह न हो अतः शुद्धता से न्यास रखना चाहिए। (न्यासकर्ता द्वारा) जितना धन रखा गया उतना (धन) धनी पुनः उसे दे (वापस करे)। जिस प्रकार ग्रहण करना उसी प्रकार प्रदान करना जिससे दोनों में सदा प्रीति (बनी रहे)। याच्यमानं स्वकीयं स्वं निक्षेप्ता यो न यच्छति। भूप आहूय तं 'मैत्र्यभावेन क्षेपिनं वदेत्॥८॥ विवादोऽयं किमन्योऽन्यं नायं धर्मस्तवोचितः। स्ववंशो लज्यते येन न तत्कुर्वीत बुद्धिमान्॥९॥ जो न्यास रखने वाला अपने धन के से माँगे जाने पर जो नहीं देता है राजा न्यास रखने वाले उस व्यक्ति को बुलाकर मैत्रीभाव से पूछे। यह परस्पर विवाद क्यों? यह धर्म नहीं है, तुम्हारे लिए उचित नहीं है। हे बुद्धिमान् ! जिससे अपना वंश लज्जित हो वैसा (कृत्य) नहीं करना चाहिए। स्वामिन्मम तु न ह्यस्ति देयैतस्य वराटिका। श्रीमद्भिर्निश्चयं कृत्वा यथा रोचेत तत्कुरु॥१०॥ हे स्वामिन्! मुझे इसकी एक कौड़ी भी देय नहीं है (अतः) श्रीमन्त निश्चय कर जैसा उचित समझे वही करें। स्वामिकार्यहितोद्युक्तैः पुरुषैः साक्ष्यदायिभिः । विजातिभिर्गुढचरैर्निीयात्सत्यतां द्वयोः॥११॥ १. नयोः भ १, प १, प २।। २. मै अभावेन क्षेपितं प२।। ३. दायिनिः भ २ दायिनि प२।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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