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________________ तृतीय अधिकार ३.१० निक्षेपप्रकरणम् श्रीविमलस्य पादाब्जनखा दिन्तु सुखानि वः । यज्जन्मनि नभोभागाद्रत्नवृष्टिरभूत्तराम् ॥१॥ श्री विमलनाथ के, जिनके जन्म के समय आकाश खण्ड से रत्नों की प्रचुर वर्षा हुई, चरण-कमल के नख तुम्हें सुख प्रदान करें। (वृ०) पूर्वप्रकरणे भृत्यदोषेण स्वामिनो हानिः सूचिता ततः खिन्नः कोऽपि स्वामी वृद्धिलाभार्थं रक्षार्थं वा स्वधनं क्वचिन्निक्षिप्य निर्वाहं करोत्यतो निक्षेपप्रकारोऽत्र वर्ण्यते तत्र तावन्निक्षेपस्वरूपमुच्यते पूर्वप्रकरण में सेवक के दोष से स्वामी की हानि का निर्देश किया गया उससे दुःखी कोई भी स्वामी ब्याज के लाभ के लिए अथवा धन की रक्षा के लिए अपने धन का कुछ अंश न्यास रखकर निर्वाह करता है । अतः निक्षेप के भेदों का यहाँ वर्णन किया जाता है। उस प्रसङ्ग में निक्षेप के स्वरूप का कथन किया जाता है कर्मोदयेन मर्त्यस्य सन्ततिर्न 1 भवेद्यदा । 'दुष्टोऽथवा तनुजः स्यात्तदा दुःखं महत्क्षितौ॥२॥ जब कर्मोदय के कारण किसी पुरुष की सन्तान उत्पन्न न हो अथवा सन्तान दुष्ट हो तो पृथ्वी पर महान दुःख होता है। ततः कुटुम्बपुष्ट्यर्थं स्तैन्यादिभयतोऽपि वा । स्वयं व्यवहृतिं कर्तुमशक्तेन नरेण वा ॥ ३ ॥ यात्रार्थमुद्यतेनापि क्षिप्यते यद्वसु स्वकम्। धर्मज्ञे कुलजे सत्ये सदाचाररतात्मनि ॥४॥ स निक्षेपविधिः प्रोक्तः सर्वजीवसुखप्रदः । स तु द्विविधतापन्नः समिषाऽमिषभेदतः ॥५॥ १. स्यादुष्टनुजस्तदा भ २, प२॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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