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________________ स्वामिभृत्यविवादप्रकरणम् १४३ (वृ०) प्रसङ्गाद्गोपवेतनस्वरूपं गवादिचारक्षेत्रस्वरूपं चोच्यते - प्रसङ्गवश गोपालक के वेतन का स्वरूप और गाय आदि के चराने के योग्य खेत के विषय में कथन - शताद्गवां वत्सतरा द्विशताद्गोपवेतनम्। प्रतिवर्ष भवेद्देयं दोहदश्चाष्टमे दिने॥१०॥ __ (गोपालक को) सौ गायों पर एक बछिया, दो सौ गायों पर दो (बछिया) वार्षिक वेतन के रूप में देय है। दूध देने वाले पशु को (बच्चा देने के) आठवें दिन चराने हेतु देना चाहिए। नृपेण ग्रामलोकैश्च रक्षणीया वसुन्धरा। गवादिपशुवृत्यर्थं नो चेद्दुःखं सदा भवेत्॥११॥ गाय इत्यादि पशुओं के निर्वाह के लिए राजा और ग्रामीणों द्वारा (गोचर आदि) भूमि की रक्षा करनी चाहिए नहीं तो सदा दुःख होगा। (वृ०) तत्प्रमाणमाह - उस (पशुचारागाह) के प्रमाण का कथन - परिणाहोऽभितो रक्ष्यो ग्रामस्य धनुषां शतम्। शतद्वयं कर्वटस्य नगरस्य चतुःशतम्॥१२॥ ग्राम के चारों ओर सौ धनुष (चार हाथ के बराबर लम्बाई), कर्वट (मण्डी, बाजार) के चारों ओर दो सौ धनुष और नगर के चारों ओर चार सौ धनुष विस्तृत (गोचर हेतु) संरक्षित होना चाहिए। संक्षेपेणात्र गदितो विवादः स्वामिभृत्ययोः। व्यवहारेऽष्टमो भेदो विशेषः श्रुतसागरात्॥१३॥ • व्यवहारमार्ग में आठवें भेद स्वामी और सेवक के विवाद के विषय में संक्षेप में यहाँ वर्णित किया गया है (इसके विषय में) विशेष श्रुतसागर अर्थात् बृहदहन्नीति से जानना चाहिए। ॥ इति स्वामिभृत्यविवादप्रकरणम्।। १. ०दस्पाष्टमे भ १, भ २, प १, प २।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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