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________________ १३२ लघ्वर्हन्नीति स्वामी की पुत्री से विवाह के लोभ से आया हुआ दास। . अमातृपितृको यः स्वयमात्मानं विक्रीणाति १५। विना माता-पिता के जो स्वयं अपना विक्रय करता है। अथदासधर्मापकरणे हेतुविशेषानाह - दासधर्म के त्याग में विशेष हेतुओं का वर्णन - चौरैर्हत्वा तु विक्रीतो बलाबासीकृतश्च यः। दासत्वं तस्य नो युक्तं बलात्तं मोचयेन्नृपः॥८॥.. जो चोरों द्वारा चोरी कर विक्रय किया गया है और जो बलपूर्वक दास बनाया गया है उसकी दासता उचित नहीं है राजा उसे बलपूर्वक मुक्त कराये। स्वामिनं मोचयेद्यस्तु प्राणसंशयसङ्कटात्। मुच्यते दासभावेन पुत्रवद्भागभाक् च सः॥९॥ जो अपना प्राण सङ्कट में डालकर स्वामी को सङ्कट से मुक्त कराये (स्वामी) उसे दासभाव से मुक्त करे और वह पुत्र के समान सम्पत्ति में हिस्सेदार हो। .. (वृ०) अयं साधारणः सर्वदासविषयिको विधिः।। उपरोक्त साधारण विधि सभी प्रकार के दासों को मुक्त करने के विषय में है। अथ विशेष दर्शयति - (दासों को मुक्त कराने के विषय में) विशेष विधि का वर्णन - सवृद्धिधनदानाद्वै आधिता ऋणमोचिताः। . दासभावात्प्रमुच्येरन्नकालेपोषितस्तथा :... ॥१०॥ भक्तिदासोऽपि तद्भुक्तद्रव्यं दत्वा च मुच्यते। युद्धे पणे जयप्राप्तस्तथा च स्वयमागतः॥११॥ तुल्येन कर्मणा दास्यान्मुच्येद्दासीकृतोऽपि च। दासीनिग्रहतश्चान्ये न मुच्यन्ते कृतिं विना॥१२॥ आधित (धरोहर रूप में निक्षिप्त) और ऋणमोचित (ऋण से मुक्ति के बदले बनाये गये) तथा दुर्भिक्ष काल में पोषित दास, ब्याज सहित धन देने पर दास भाव से मुक्त किये जाने चाहिए। भुक्ति दास (भोजन के बदले दास बनाया गया) भी भोजन के मूल्य के बराबर धन देकर मुक्त होता है। युद्ध तथा द्यूत में जीतकर प्राप्त तथा स्वयं आये हुए दास को (भोजन आदि के मूल्य) के बराबर कार्य कराकर दासता से मुक्त करना चाहिए। दासता में बद्ध अन्य कोटि के दास स्वामी के कृत्य का बदला चुकाये बिना मुक्त नहीं हो सकते हैं।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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