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________________ १२४ लघ्वर्हन्नीति पृष्ट्वा तद्वचसा कृत्वा सीमासंवादनिर्णयम्। चिह्न तत्र तथा कार्यं यथा स्यान्न पुनः कलिः॥९॥ सीमा (सम्बन्धी) विवाद उत्पन्न होने पर राज्यकर्माधिकारियों को निर्मलकाल (वर्षा ऋतु व्यतीत) होने पर विवादित भूमि पर जाकर पूर्व निर्धारित चिह्न को भली प्रकार देखना चाहिए। उन चिह्नों के अभाव में साक्षी रूप में उस (भूमि) के समीप स्थित प्राचीन मन्त्रियों, वृद्धों, ग्वालों, किसानों, नियुक्त अधिकारियों, सामन्तों, ग्रामीणों, वनवासियों और सत्यधर्मनिष्ठ पड़ोसियों को बुलाकर धर्म की शपथ दिलाकर वृत्तान्त पूछना चाहिए। पूछकर उनके कथन के आधार पर सीमाविवाद का निर्णय कर ऐसा चिह्न बनाना चाहिए जिससे पुनः कलह न हो। (वृ०) काले च निर्मले इति यस्मिन् काले जलपुरादिव्याघताभावेन चिह्न स्फुटतया ज्ञातुं शक्यते स एव निर्मलो ज्ञेयः। मूल श्लोक में 'काले च निर्मले' अर्थात् निर्मल काल के उल्लेख से जानना चाहिए कि जिस काल में जल, नगर आदि की बाधा के अभाव में चिह्न को स्पष्ट रूप से जाना जा सकता है वही निर्मल का अभिप्राय जानना चाहिए। केन चिह्न कार्यमित्याह - (अधिकारियों को) किस वस्तु से (सीमा-निर्धारण का) चिह्न करना चाहिए, इसका कथन - सेतुना च तडागेन देवतायतनेन च। पाषाणैः सरसा वाप्यावटेनापःश्रवेण वा॥१०॥ माकन्दपिचुमन्दैश्च किंशुकाश्वत्थवेणुभिः। न्यग्रोधशाल्मलीशालशमीतालैश्च शाखिभिः॥११॥ राज्याधिकारिणा कार्य तत्सीमास्थलमङ्कितम्। विपर्ययो यथा नृणां सीमाज्ञाने न सम्भवेत्॥१२॥ राज्याधिकारियों द्वारा (भूमि के पास स्थित) पुल, तालाब, मन्दिर, पत्थर, सरोवर, वापी, खड्ड एवं जलप्रवाह से अथवा आम, नीम, किंशुक, पीपल, बाँस, बरगद, शाल्मली, शाल, शमी और ताल वृक्षों से उस सीमास्थल को चिह्नित करना चाहिए जिससे लोगों में सीमा-ज्ञान के विषय में भ्रम न हो। सीमासन्धिषु गर्तासु करीषाङ्गारशर्कराः। वालुकाश्च नृपः क्षिप्त्वा गुप्तचिह्नानि कारयेत्॥१३॥ (क्षेत्र) सीमाओं के मिलने के स्थान पर गड्ढों में उपले, अङ्गारे, बजरी, बालू आदि रखकर राजा गुप्त चिह्न करवाये।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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