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________________ सीमाविवादप्रकरणम् १२३ वादी द्वारा 'यह सब क्षेत्र मेरा है' यह कहने पर अन्य (प्रतिवादी) का यह कहना 'आधा मेरा है' यह उभयवाद है। एतत्क्षेत्रं मम बहुवर्षेभ्योऽष्टरज्जुमितमस्तीत्युक्ते परः प्रत्यवतिष्ठते नाष्टरज्जुमितमस्तीति न्यूनतासंवादः। वादी द्वारा 'यह मेरा क्षेत्र बहुत वर्षों से आठ रज्जु माप का है' यह कहने पर अन्य (प्रतिवादी) का यह प्रतिवाद करना कि आठ रज्जु माप का नहीं है न्यूनतासंवाद तत्रैव केनचिदुक्तमधिकं वर्तते इत्यधिकसंवादः। उसी में कोई यह कहे कि अधिक है तो अधिकसंवाद है। मदीयेयं भूमिः प्राचीनभोगसत्वेनेदानीमपि भुज्यत इत्युक्ते प्रति- वादिनोक्तं नास्य भोगः प्राचीन इत्याभोगभुक्तिविवादः। वादी द्वारा यह कहने पर कि यह भूमि मेरी है प्राचीन काल से स्वामित्व होने से इस समय भी स्वामित्व है प्रतिवादी का यह प्रतिवाद करना कि इसका स्वामित्व प्राचीन काल से नहीं है - यह आभोग भुक्ति विवाद है। एष्वन्यतमविवादेन विवदमानयोरर्थिप्रत्यर्थिनोनिर्णयार्थ स्थेयमपस्थितयोस्तन्निर्णयं कर्तुकामेन स्थेयेन पूर्वं निर्मलकाले विवादास्पदभूमिं दृष्ट्वा तन्निकटवर्तिसाक्षिणः समाहूय प्रष्टव्याः तद्वाचा निर्णयं विधाय तत्र चिह्न कार्य यथा पुनः कलहो न प्रसज्येत् तथाहि - उपर्युक्त विवादों में से प्रत्येक विवाद के वादी-प्रतिवादी के निर्णय के लिए निर्णायकों की उपस्थिति में निर्णय कर वहाँ चिह्न करना चाहिए जिससे पुनः कलह उत्पन्न न हो, क्योंकि - सीमावादे समुत्पन्ने राजकर्माधिकारिणः। विवादास्पदस्थाने हि गत्वा काले च निर्मले॥५॥ चिह्न निर्णयकृत्तत्र द्रष्टव्यं प्राक्तनं भृशम्। तदभावे च तत्रत्यान् पार्श्वस्थानपि साक्षिणः॥६॥ प्राचीनमन्त्रिणो वृद्धान् गोपालांश्च कृषीवलान्। नियोगिनश्च सामन्तान् ग्रामीणान् वनवासिनः॥७॥ प्रातिवेश्मिकतापन्नान् सत्यधर्मपरायणान्। आहूय शपथं धर्म्यं दत्वा वृत्तं च प्राक्तनम्॥८॥ १. वियोगिनश्च भ १, भ २, प १, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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