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________________ प्रधान सम्पादकीय करना चाहिए। इसमें पाँचवें अणुव्रत का नाम इच्छापरिमाण दिया है। 'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' में भी यह नाम आता है। गुणव्रतों से लाभ बतलाते हुए रत्नकरण्ड में भी श्रावक को 'तत्तायोगोलकल्प' कहा 1 इसमें भी ' तत्तायणोलकप्पो' पद दिया है। ७ ५. उपभोगपरिभोगपरिमाण का कथन करते हुए इसमें उसके दो भेद किये है- भोजन और कर्म । तथा उन दोनों के अतिचार अलग-अलग कहे हैं। भोजन सम्बन्धी उपभोगपरिभोगपरिमाणव्रत के तो वही अतिचार हैं जो तत्त्वार्थसूत्र में सचित्त आहार आदि कहे हैं और कर्मविषयक भोगोपभोगपरिमाण के अतिचार वे ही हैं जिनका कथन सागारधर्मामृत के पाँचवें अध्याय में खरकर्म के अतिचाररूप से करके उसका निराकरण किया है, अस्तु, ग्रन्थ बहुत उपयोगी है और पं. बालचन्द्र जी सिद्धहस्त अनुवादक हैं। स्वाध्यायप्रेमियों को इसका स्वाध्याय करना चाहिए। - कैलाशचन्द्र शास्त्री - ज्योतिप्रसाद जैन ग्रन्थमाला सम्पादक
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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