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________________ प्रस्तावना १. प्रति-परिचय १. अ-यह प्रति श्री ला. द. भा. संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद की है। वह हमें श्री पं. दलसुख भाई मालवणिया की कृपा से प्राप्त हुई थी। उसकी लम्बाई-चौड़ाई १०=x४ इंच है। उसकी पत्र-संख्या ५१ है। अन्तिम श्वाँ पत्र नष्ट हो गया है, जिसके स्थान पर मुद्रित प्रति के आधार से लिखकर दूसरा पत्र जोड़ दिया गया दिखता है। इसके प्रत्येक पत्र में दोनों ओर १५-१५ पंक्तियाँ हैं। प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४५-५५ अक्षर हैं। प्रत्येक पत्र के ठीक मध्य में कुछ स्थान रिक्त रखा गया है। प्रति देखने में सुन्दर दिखती है, पर है वह अत्यधिक अशुद्ध। इसके लेखक ने उ, ओ, तु और न ए, प और य; त्त और न्त, त और न; च्छ, त्य; च, द और व; भ और स; सु और स्त तथा द्द और द्ध इन अक्षरों की लिखावट में प्रायः भेद नहीं किया है। इ के स्थान में बहुधा ए लिखा गया है। आ (1) और ए () मात्रा के लिए बहुधा 'T' इसी मात्रा का उपयोग किया गया है। पूर्व समय में ए की मात्रा के लिए विवक्षित वर्ण के पीछे 'T' इसका उपयोग किया जाता रहा है। प्रस्तुत प्रति में यह पद्धति आ और ए के लिए अतिशय भ्रान्तिजनक रही है। जैसे- 'वाहा' इसे 'वहो' के साथ 'वाहा' भी पढ़ा जा सकता है। यदि इसे 'वाहा' ऐसा इस रूप में लिखा जाता तो प्रायः भ्रान्ति के लिए स्थान नहीं रहता। प्रति में बीच-बीच में स्वेच्छापूर्वक लाल स्याही से दण्ड (।) दिये गये हैं। बहुधा गाथा के अन्त में उसके पृथक्करण के लिए न कोई चिह्न दिया गया है और न संख्यांक भी दिये गये हैं। इसके अतिरिक्त अधिकांश पत्रों में बीच-बीच में प्रायः १-२ पंक्तियाँ लिखने से रह गयी हैं। कहीं-कहीं पर तो कुछ आगे का और तत्पश्चात् उसके अनन्तर पीछे का पाठ अतिशय अव्यवस्था के साथ लिखा गया है। (उदाहरणार्थ देखिए गाथा ३२५ के पाठभेद)। प्रति का प्रारम्भ ॥६०॥ नमः सिद्धेभ्यः ॥' इस वाक्य के अनन्तर हुआ है। अन्तिम पत्र के नष्ट हो जाने से उसमें लेखनकाल और लेखक के नाम आदि का निर्देश रहा या नहीं, यह ज्ञात नहीं होता। २. प-यह प्रति भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टीट्यूट पूना की है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई ११४४- इंच है। पत्र संख्या उसकी २४ (२४वाँ पत्र दूसरी ओर कोरा है) है। इसके पत्रों में पंक्तियों की संख्या अनियमित है-प्रायः २१-२८ पंक्तियाँ पायी जाती हैं। प्रत्येक पंक्ति में लगभग ६०-७० अक्षर पाये हैं। कागज पतला होने से स्याही कछ फट गयी है, इसलिए पढ़ने में भी कहीं-कहीं कठिनाई होती है। यह भी अशुद्ध है तथा पाठ भी जहाँ-तहाँ कुछ लिखने से रह गये हैं, फिर भी पूर्व प्रति की अपेक्षा यह कुछ कम अशुद्ध है और पाठ भी कम ही छूटे हैं। गाथाओं के अन्त में गाथांक प्रायः २४५ (पत्र १५) तक पाये जाते हैं, तत्पश्चात् वे उपलब्ध नहीं होते। जहाँ गाथांक नहीं दिये गये हैं वहाँ गाथा के अन्त में दो दण्ड (1) कहीं पर दिये गये हैं और कहीं वे नहीं भी दिये गये हैं। इस प्रति में एकार की मात्रा (') इसी रूप में दी गयी है, पर कहीं-कहीं उसके लिए अक्षर के पीछे दण्ड (1) का भी उपयोग किया गया है। 'ओ' को वहाँ 'उ' इस रूप में लिखा गया है, जबकि पूर्व प्रति में उ और ओ दोनों के लिए 'उ' ही लिखा गया है। प्रति का प्रारम्भ ॥ ८०॥ श्री गुरुभ्यो नमः' इस वाक्य के अनन्तर किया गया है। अन्तिम पुष्पिका
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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