SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावकप्रज्ञप्ति: तेषां नारकाणाम् । वध्यमानानां हन्यमानानामपि । कै: ? परमाधार्मिकसुरैरम्बादिभिः । अनवरतं सततम् । रौद्रध्यानगतानामपि न तथा बन्धो यथा विगमः कर्मणी दुःखानुभवादिति गाथार्थः ॥१३६॥ ។ ९२ कथमेतन्निश्चीयत इत्यत्राह - नरगाउबंधविरहा अनंतरं तंमि अणुववत्तीओ । " तदभावे वि य खवणं परुप्परं दुक्खकरणाओ ॥१३७॥ [ १३७ अपट्टा मिवि संकिलेसओ चैव कम्मखवणं त्ति । न हि तयभावंम सुरो तत्थ वि य खवेइ तं कम्मं ॥ १३८ ॥ - नरकायुबन्धविरहात् न कदाचिन्नारको नरकायुर्बध्नाति । अत्रैव युक्तिमाह - अनन्तरं नरकोद्वर्तनसमनन्तरमेव तस्मिन्नरक एवानुत्पत्तेरनुत्पादात् न चाव्यवहितमुत्पद्यत इति सिद्धान्तः । ततश्च यथेदं न बध्नाति तथान्यदपीत्यभिप्रायः । तदभावेऽपि च परमाधामिकाद्यभावेऽपि च पङ्कादिपृथिवीषु । क्षपणं कर्मणस्तेषां परस्परं दुःखकरणादन्योन्य पीडाकरणेन, परस्परोदीरितदुःखा इति वचनात् नान्यनिमित्त क्षेपणमिति ॥ १३७ ॥ स्यादप्रतिष्ठाने नान्यनिमित्तमित्येतदाशङ्कयाह नारकियोंके वैसा बन्ध नहीं होता जैसो कि निर्जरा होती है । अभिप्राय यह है कि तीसरे नरक तक असुरकुमार ( भवनवासियों को एक जाति ) देवोंके द्वारा सताये जानेपर रौद्रध्यानके वशीभूत होनेपर भी वहां नारकियोंके कर्मका बन्ध तो अल्प होता है, पर दुखानुभवन से उसकी निर्जरा ही अधिक होती है। इस नारकन्यायसे सिद्ध है कि दुखी जीवोंका वध करनेपर उनके पापका क्षय अधिक होता है ॥१३६॥ इसका कैसे निश्चय किया जा सकता है कि उनके पापका क्षय अधिक होता है, इसे वादी द्वारा आगे स्पष्ट किया जाता है उन नारकियोंके नारकायुका बन्ध नहीं होता है, इसीसे निश्चित है कि उनके पापका क्षय हो जाता है । नारकायुका बन्ध न होने का भी कारण यह है कि अनन्तरनरक से निकलकर अव्यवहित अगले भवमें - वे नरकमें उत्पन्न नहीं होते । कर्म सिद्धान्त में भो नारकियोंके नारकायुक्रे बन्धका निषेध किया गया है। यहाँ यह शंका हो सकती थी कि चौथी आदि पृथिवियों में, जहां असुरकुमारोंका गमन सम्भव नहीं है, वहाँ उन नारकियों के पापका क्षय कैसे होता है, इस आशंकाको हृदयंगम करके वादी कहता है कि वहां उन नारकियों के पापका क्षय परस्परमें एक दूसरेको दिये जानेवाले दुःखके अनुभवन से होता है ॥१३७॥ अप्रतिष्ठान नरक में कर्मक्षपणका अन्य निमित्त तो नहीं है, तब वहां वह कैसे होता है, इस शंकाका उत्तर वादी आगे देता है सातवीं पृथिवीमें स्थित अप्रतिष्ठान नरक में संक्लेशसे ही वहां उत्पन्न होनेपर जन्मभूमिसे नीचे गिरकर ऊपर उछलने आदिके कष्टके अनुभवन से ही - वहाँके नारकियोंका कर्मक्षय १. अ· मपि के सुरैरेषादिभि । २. अ तयभावे । ३. अस्या प्रतिष्ठाने नानिमित्तं क्षपणमिति स्याथतिष्ठाने मानिमित्तमित्येतदा ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy