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________________ 59/श्री दान-प्रदीप किसी खोयी हुई वस्तु को वापस प्राप्त करवाना आदि कार्यों के द्वारा सेनापति के दिल का विश्वास हासिल कर लिया था। उसने भी राजा के द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर ठगने में चतुर वाणी के द्वारा कहा-“हे स्वामी! मेरे ज्ञान के द्वारा यही सिद्ध होता है कि आपके यहीं रहते हुए विजय निश्चित है।" । ___ ज्योतिषी के वचनों के समान उस निमित्तज्ञ के वचन जानकर राजा मन ही मन में बड़ा खुश हुआ और उसका भी सत्कार किया। उधर एक बार राजपुरोहित ने कपटी सामवेदी से कहा-"तुम कुछ भी शांतिकर्म करो, जिससे हमारे स्वामी की विजय हो।" तब उस मायावी ने कहा-"अगर वेद के पवित्र मंत्रों द्वारा पवित्र होम करवाया जाय, तो राजा की अवश्य विजय होगी।" ___ यह सुनकर पुरोहित ने राजा की आज्ञा लेकर उसे ही उस होम को करने में होता के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि पुरोहित उसे अपना विश्वासपात्र मानता था। फिर उसने अभिचारना मंत्र पढ़कर होम किया, जिससे सेवाल की ही सेना में मृत्यु देनेवाले रोग उत्पन्न हुए। उधर चन्द्रसेन कुमार ने निर्विघ्न रूप से शत्रु के देशों को साधा और उसके कितने ही सामन्तों को अपनी आज्ञा में लिया। उस समय चन्द्रसेन कुमार की सेना शुक्लपक्ष के चन्द्र की ज्योत्स्ना की तरह और सेवाल राजा की सेना कृष्णपक्ष के चन्द्र की ज्योत्स्ना की तरह शोभित होने लगी। फिर उन चारों गुप्तचरों ने गुप्त रूप से कुमार को कहलवाया-"हे देव! अब सेवाल के साथ युद्ध करने का उत्तम अवसर है।" यह सुनकर युद्धरसिक चतुरंगिणी सेना के साथ चन्द्रसेन कुमार ने शीघ्र ही आकर शत्रु के सम्पूर्ण नगर को घेर लिया। यह देखकर शूरवीरों में अग्रसर सेवाल राजा भी अपनी सेना के साथ दुर्ग से उसी तरह बाहर निकला, जैसे सिंह अपनी गुफा से बाहर आता है। वाद्यन्त्र के शब्दों द्वारा सूर्य के अश्वों को भी त्रस्त बनाते हुए दोनों के सैन्य निःशंक रूप से युद्ध करने के लिए आमने-सामने आये। दोनों और के शूरवीरों में भयंकर संग्राम हुआ । उन दोनों सैन्यों से भयभीत जयलक्ष्मी एक बारगी तो किसी के पास भी जाने को उद्धत नहीं हुई। पर कुछ समय बाद सेवाल राजा की सेना परास्त होकर भागने लगी। तब यह देखकर व्याकुल होते हुए राजा ने जैसे ही दुर्ग में प्रवेश करने का उपक्रम किया, उसी समय वज्रसिंह आदि सामन्त राजा उसके सम्मुख आकर वचन-चातुर्य द्वारा उससे कहने लगे-“हे देव! क्षणभर आप स्थिरमति बनें। हम सेवकों का भुजबल तो देखें। यह बिचारा बालक हमारे साथ क्या
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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