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________________ 58/श्री दान-प्रदीप कृत्रिम क्लेश करके तिरस्कारपूर्वक उन्हें सैन्य से निकालने की कृपा करें और उन्हें सेवाल का सेवक बना देवें।" इस प्रकार सारे समाचार जानकर चन्द्रसेन कुमार ने वैसा ही किया। इस प्रकार वे सामन्त बनावटी क्रोध करके शत्रु राजा की तरह उसके सैन्य से बाहर निकल गये। फिर उन्होंने पत्र लिखकर सेवाल राजा से विज्ञप्ति की-"इस नादान बालक ने हमारा तिरस्कार किया है। इससे बदला लेने के लिए हम आपकी सेवा में रहना चाहते हैं।" इस प्रकार के पत्र को पढ़कर सेवाल राजा ने महामंत्री को बुलवाकर पूछा-"शत्रु के सामन्त यहां आना चाहते हैं। कैसे क्या करना चाहिए? क्या वे वास्तव में शत्रु राजा के विरुद्ध हैं?" तब महामंत्री ने कहा-“हे देव! आज वहां से हमारे चर-पुरुष आनेवाले हैं। उनके द्वारा हकीकत सुनकर ही हम योग्य निर्णय करेंगे।" __यह कहकर मंत्री अपने घर गया। तभी वह कपटी सेवक, जो कि सर्व कार्यों में अपने-आपको विश्वासी चर प्रमाणित कर चुका था, उससे सारा वृत्तान्त मंत्री ने कहा। तब उस दम्भी सेवक ने भी कहा-"अगर वज्रसेनादि सामन्त हमारी अधीनता स्वीकार करते हैं, तो चन्द्रसेन कुमार भी हमारा सेवक बन गया-ऐसा मानना चाहिए, क्योंकि उन्हीं सामन्तों के कारण वह अब तक रणसंग्राम में कुशल माना जाता था।" उसी समय कुमार की सेना में गये हुए चरपुरुष वापस लौटे। उन्होंने शत्रु का सारा हाल मंत्री को बताया। उन चरों को साथ लेकर मंत्री राजसभा में आया। राजा के पूछने पर उन्होंने शत्रु का सारा वृत्तान्त बताया-“वजसिंहादि सामन्तों का राजा के साथ झगड़ा हो जाने पर राजा ने हमारे सामने ही उन्हें अपने सैन्य से निकाल दिया है।" यह सुनकर सेवाल राजा ने मंत्री से पूछा-"अब हमें क्या करना योग्य है?" प्रधान ने कहा-“हे देव! आपको शीघ्र ही उन सामन्तों को सम्मानपूर्वक बुलवा लेना चाहिए।" तब सेवाल राजा ने उन सामन्तों को आदरपूर्वक बुलवाकर उनका सम्मान किया। उस ज्योतिषी के वचन सत्य सिद्ध होने के कारण उसका भी वस्त्रादि प्रदानपूर्वक बहुमान किया। अपने स्वामी के कार्य में तत्पर वे सामन्त सेवाल को पराजित करने की इच्छा को मन में रखते हुए भी बाहर से दिखावा करते हुए उसी प्रकार सेवाल की सेवा करने लगे, जैसे साधु शरीर की सेवा करता है। अब तीसरा व्यक्ति, जो नैमित्तिक के रूप में सेनापति के पास रहा हुआ था, उसने भी
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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