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________________ 57 / श्री दान- प्रदीप वे राजादि के इतने विश्वासपात्र बन गये, मानो वंश-परम्परा से उनके ही सेवक रहे हों । फिर वे वहां की प्रत्येक घटना की जानकारी अपने स्वामी चन्द्रसेन कुमार को देने लगे । अहो! दंभ रूपी राजा की कपट-नाटक में कैसी चतुराई ! कुछ समय बाद चन्द्रसेन कुमार को उसके मंत्रियों ने कहा - " अपना और शत्रु का सैन्य - प-बल समान हो या अपना सैन्य बल ज्यादा हो, तो ही युद्ध करना योग्य होता है। पर अभी शत्रु - सैन्य - सम्पदा हमारे सैन्यबल से ज्यादा है। अतः उनके साथ युद्ध करने का अभी अवसर नहीं है। हे देव! हमें अभी उनके देश में कुछ उपद्रव करना चाहिए। ऐसा करने से उस-उस देश के राजा भय के कारण आपका स्वामित्व अंगीकार कर लेंगे। फिर शत्रु - सैन्य कृष्ण पक्ष के चन्द्र की तरह हानि को प्राप्त होगा और आपका सैन्य शुक्ल पक्ष के चन्द्र की तरह वृद्धि को प्राप्त होगा ।" यह सुनकर चन्द्रसेन कुमार वेगयुक्त अश्वों आदि की सेना के साथ शत्रु- देशों का विनाश करने लगा। यह जानकर भृकुटि चढ़ाने से भयंकर बने कपालवाले उस सेवाल राजा ने चन्द्रसेन कुमार के साथ युद्ध करने के लिए अपने सैन्य को सज्जित किया । प्रयाण करने की इच्छा से उसने पण्डित को बुलवाकर उसके पास मुहूर्त्त दिखाया । आगन्तुक ज्योतिष के उत्तर की प्रतीक्षा में उस पर उत्सुकता के साथ दृष्टिपात किया । तब उस कपटी ज्योतिषी ने कहा- "इन सभी ज्योतिषियों ने जो लग्न - मुहूर्त आपको दिया है, उसे मैं कैसे दोषयुक्त बता सकता हूं? पर आपके प्रति मेरी सच्ची भक्ति ही मुझे बोलने के लिए विवश कर रही है । अगर सच्चा भक्त अप्रिय लगने पर भी हितकारी वचन न कहे, तो वह कुभक्त होता है । अतः मैं आपको कहना चाहता हूं कि यह लग्न स्थिर राशि से शोभित है, अतः इस लग्न के बल से आपको सहीं अपने स्थान पर रहते हुए ही विजयलक्ष्मी की प्राप्ति होगी। ऐसा मेरा ज्ञान कहता है ।" यह सुनकर अपने आपको पण्डित माननेवाले अन्य ज्योतिषी ने कहा- "अपने देश का नाश हो जाने पर क्या विजय मिलेगी?” तब उस कपटी ज्योतिषी ने कहा - " अगर मेरे वचनों पर विश्वास न हो, तो हे स्वामी ! पाँच-छः दिन तक आप इन्तजार करें। इससे आपको प्रतीति हो जायगी ।" यह सुनकर राजा ने उसके वचनों को स्वीकार कर लिया। तब उस कपटी ज्योतिषी ने चन्द्रसेन कुमार को अपने चर - पुरुष भेजकर यह कहलाया - "हे स्वामी! यहां का सारा वृत्तान्त आपको चर - पुरुष द्वारा ज्ञात हो ही जायगा। आगे समाचार यह है कि आपके वज्रसिंह आदि कितने ही सामन्तों को पहले आप अपना अभिप्राय बताकर कपट - रीति से
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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