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________________ 23 / श्री दान- प्रदीप सुभटों ने हर्षित होकर अपनी राजकुमारी से कहा - "हे कन्ये! इस कुमार ने आपकी सारी प्रतिज्ञाएँ पूर्ण की हैं। निमित्तज्ञान से आपकी सारी परिस्थिति का पता लगाया। सभी को आपकी स्थिति बताकर प्रसन्न किया । फिर काष्ठकला के माध्यम से काष्ठ के गरुड़ बनाकर उनके द्वारा यहां आये और धनुर्विद्या के द्वारा राक्षसी को शक्तिहीन करके उसके संकट को दूर किया है। हे देवी! यह रंगावती नगरी के स्वामी लक्ष्मीपति राजा के सुपुत्र मेघनाद कुमार बुद्धि के निधान हैं। निश्चय ही आपका प्रबल भाग्योदय हुआ है, जिससे ये कुमार स्वयं ही आपके स्वयंवर महोत्सव में पहुँच गये । हे चारुवदना! अगर ये कुमार आपके स्वयंवर में नहीं आये होते, तो इस उत्कट संकट में आपकी रक्षा कौन करता?" सारा वृत्तान्त सुनकर राजकन्या अत्यन्त हर्षित हुई । विकस्वर नेत्रों से कुमार को देखते हुए मन ही मन उसका अपने पति के रूप में वरण कर लिया । उसके बाद कुमार राजकन्या को साथ लेकर अत्यन्त हर्षित हुए सुभटों के साथ गरुड़ों पर आरूढ़ होकर निर्विघ्न रूप से चम्पापुरी में आया । कुमार को अपनी कन्या के साथ देखकर राजा अत्यन्त आनन्दित व विस्मित हुआ । उसने शीघ्र ही दोनों के विवाह की तैयारी करवायी। विस्मित नगरजनों ने भी कुमार की प्रशंसा करते हुए कहा - "अहो ! निमित्त शास्त्र में इसकी कुशलता अनुपम है। अहो ! इसकी शिल्पकला के आगे विश्वकर्मा भी नतमस्तक है। अहो! इसकी धनुर्विद्या तो अर्जुन को भी परस्त करती है । अहो ! सम्पूर्ण भाषाएँ जानने में इसकी योग्यता अस्खलित है । अहो ! इसका सर्वांग सौभाग्य जगत् में अद्भुत है । अहो ! इसका अलौकिक पराक्रम सभी दिशाओं को जीतने में समर्थ है। अहो ! इस मदनसुन्दरी ने जो-जो प्रतिज्ञाएँ की थीं, वे सभी दुष्पूर होने पर भी इसने लीला - मात्र में पूर्ण कर दी ।” इस प्रकार पौरजनों द्वारा स्तुति किये जाते हुए उस कुमार का राजा ने विशाल महोत्सवपूर्वक अपनी कन्या के साथ परिणय-सम्बन्ध किया। हथलेवा छुड़ाते समय राजा ने कुमार को दास-दासी, वस्त्राभूषण, हाथी-घोड़े आदि अनेक वस्तुएँ विपुल मात्रा में दीं, क्योंकि जामाता सभी को प्रिय होता है । उस कुमार की कलाओं से विस्मित अन्य आगत राजा लज्जा को प्राप्त हुए । राजा ने उन सब का भी सत्कार करके उन्हें विदा किया। फिर राजा ने कुमार को आदरपूर्वक दूसरा महल रहने के लिए दिया । उसमें इन्द्राणी के साथ इन्द्र की तरह वह कुमार अपनी पत्नी मदनसुन्दरी के साथ मनोहर भोग भोगने लगा ।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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