SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24/श्री दान-प्रदीप कितने ही दिनों के बाद कुमार राजा की आज्ञा लेकर सैन्य-सहित अपने नगर की और चला। अनुक्रम से चलते हुए उसी राक्षस की अटवी में पहुँचा। उस समय सूर्य स्वयं को जीतनेवाली कुमार की तेजलक्ष्मी को देखकर लज्जित होते हुए पश्चिमी समुद्र में डूब गया अर्थात् अस्त हो गया। कुमार ने उसी वन में पड़ाव डाल दिया। सभी लोग मार्ग के श्रम से श्रान्त होने के कारण निद्राधीन हो गये। __ कुमार देवपूजादि सन्ध्या-विधि करने लगा, क्योंकि 'सत्पुरुष श्रान्त होने के बावजूद भी आवश्यक क्रियाओं को नहीं छोड़ते।' 'गुणीजन अपनी प्रतिज्ञा को नहीं छोड़ते-यह कुमार को बताने के लिए मानो कमल मुरझा गये हों। हमारी लक्ष्मी का सर्वथा नाश करनेवाला सूर्य अस्ताचल की और चला गया है-ऐसा जानकर आनन्दित होती हुई कुमुदिनियाँ विकसित हो गयीं। चिरकाल तक भोगने के बाद दुर्दशा को प्राप्त कमलिनियों को छोड़कर भ्रमर पोयणीओ पर गुंजारव करने लगे। ऐसे चपल चित्त की वृत्तियों को धारण करनेवालों को धिक्कार है। हे लोगों! कोलाहल करते हुए पक्षी मानो यह कह रहे थे कि यह सूर्य तेजस्वी होने के बावजूद भी पश्चिम दिशा रूपी स्त्री के संग में आसक्त हो गया है। कुलटा स्त्री की तरह पश्चिम दिशा का राग सन्ध्याकालीन बादलों के बहाने से क्षण भर के लिए उत्पन्न होकर फिर सम्पूर्ण रूप से नाश को प्राप्त हो गया। सती-स्त्रियों को पति का वियोग प्राप्त होते ही दुःख होता है यह योग्य ही है इस प्रकार दिशाएँ भी मानो नवविवाहिता मदनसन्दरी को कह रही हों-वैसे श्यामल बन गयी थीं। यह राजकुमार अपनी प्रतिज्ञा का पालन कर सकेगा या नहीं यह देखने के लिए मानो गगन तारे रूपी नेत्रों को विकस्वर करने लगा था। क्या यह ब्रह्माण्ड रूपी भाजन अंजन से परिपूर्ण हो गया है या अंजनगिरि के चूर्ण से भर गया है-इस प्रकार अन्धकार से परिपूर्ण वातावरण बन गया था। ___ उस समय प्रिया से शोभित वामांगवाला कुमार पंच नमस्कार का स्मरण करके सोने की तैयारी करने लगा, तभी उसे अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हुआ। वह विचार करने लगा-“मैं अभी राक्षस के पास जाकर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करूं। पर इस नवविवाहिता पत्नी को एकदम से छोड़ देने पर यूथ से अलग हुई हरिणी की तरह इसकी क्या दशा बनेगी? मेरे आधीन अपने जीवन को सौंपनेवाली यह पतिव्रता मेरे वियोग से अवश्य ही तृणवत् अपने प्राणों का त्याग कर देगी। पर यह प्रिया चाहे अपनी इच्छानुरूप वर्तन करे, चाहे राज्यलक्ष्मी का नाश हो, चाहे मेरे प्राण प्रयाण करने में तत्पर बनें, पर मुझे अपनी कृत प्रतिज्ञा का पालन अवश्य ही करना चाहिए। 1. गोले के आकारवाला शस्त्र।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy