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________________ 20 / श्री दान- प्रदीप | मनुष्य की तरह आपका शोक से विह्वल होना उचित नहीं है । हे राजन् ! सिर पर आ पड़े कार्य में यथायोग्य तथ्य का विचार करें, क्योंकि धीर पुरुष किसी भी कार्य को करने में अपनी बुद्धि को स्थिर रखते हैं । " यह सुनकर राजा ने कहा - " ऐसी विषम आपदा रूपी नदी को तैरकर पार उतरने में तुम जैसों की बुद्धि ही नाव रूप होती है । अतः तुम्ही विचार करके कोई उपाय बताओ ।' तब औत्पातिकी बुद्धि से युक्त प्रधान ने राजा से कहा - "हे देव! दिव्य शक्ति से युक्त किसी देव ने ही कन्या का हरण किया है, क्योंकि दिन-दहाड़े हरण करने की शक्ति उसी में हो सकती है। अतः अब उस कन्या को छुड़ाकर लाने में कोई सामान्य पुरुष तो समर्थ नहीं हो सकता। जिस वस्तु का हरण अश्व ने किया हो, उसे गधा छुड़ाकर लाने में कैसे समर्थ हो सकता है? अतः जो पुरुष उस कन्या की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में समर्थ होगा, वही कदाचित् उस कन्या को वापस लाने में कामयाब हो सकता है। अतः हमें सभी राजाओं से कन्या की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के बारे में पूछना चाहिए। कोई राजा अगर उस प्रतिज्ञा को अंगीकार करे, तो वही उसे लाकर उसके साथ विवाह करे । अगर कदाचित् कोई भी राजा उसकी प्रतिज्ञा को पूर्ण नहीं कर पायेंगे, तो लज्जित होकर स्वतः ही वे अपने-अपने नगरों की और लौट जायंगे । उसके बाद हम यथाशक्ति उस कन्या को लाने का प्रयत्न करेंगे ।" प्रधान के वचनों को सुनकर हर्षित होते हुए राजा ने कहा- "यह उपाय बहुत अच्छा है। हम ऐसा ही करेंगे उसके बाद उस बुद्धिनिधान प्रधान ने आगत सभी राजाओं को बुलवाकर कहा-' राजाओं! हमारी राजकन्या ने पाणिग्रहण के लिए ऐसी प्रतिज्ञा की है कि जो कोई शब्दवेध, धनुर्वेद, समग्र भाषा, समग्र शिल्पकला और स्पष्ट रूप से अष्टांग निमित्त शास्त्र को जानता हो, वही मेरा पति होगा । अतः जो कोई वीर पुरुष इस दुष्कर प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में समर्थ हो, वह शीघ्र ही पटह का स्पर्श करे । इसके बाद अपनी निमित्त विद्या के द्वारा राजकुमारी के हरण का पता लगाये । शिल्पकला के द्वारा आकाशगामी गरुड़ बनाये । उसके प्रयोग द्वारा जिस स्थान पर कन्या रही हुई है, वहां निर्विघ्न रूप से पहुँचे। फिर कन्या का हरण करनेवाले शत्रु को धनुर्विद्यादि के द्वारा युद्ध में जीतकर कन्या को शीघ्र ही वापस लाये । उसे वापस लाने में हम भी I यथाशक्ति सहायता करेंगे। उसे वापस लाने के बाद उस राजा का उस कन्या के साथ निर्विघ्न रूप से विवाह होगा । अगर कदाचित् कन्या यहां होती, तो भी उसकी प्रतिज्ञा पूर्ण करनेवाले के साथ ही
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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