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________________ 245/श्री दान-प्रदीप हुए किसी ने नहीं देखा। वे दोनों गवाक्ष में जाकर बैठ गये। तब उन्हें प्रत्यक्ष गवाक्ष में देखकर सभी लोग विस्मित होकर बोलने लगे-"अहो! इस कुमार की कैसी अद्भुत शक्ति है! उसका धैर्य कैसा अनोखा है! इसकी कला कितनी आश्चर्यकारक है! अहो! क्या इस कुमार ने सर्व कार्य को सिद्ध करनेवाली कोई विद्या साधी है? या सर्व इष्ठ कार्य करनेवाला कोई देव इसे सिद्ध है? कि जिससे इस कुमार ने ज्वाला के द्वारा दैदीप्यमान अग्नि में से भी प्रियासहित अपने आपको सुरक्षित बचा लिया है और किसी को कुछ पता भी नहीं चला। ये दोनों अब गवाक्ष में इत्मीनान से बैठे हैं।" इस प्रकार अंतःकरण में आश्चर्य को प्राप्त वे सभी राजा और नगरजन उन दोनों को समीप से देखने के लिए उत्कण्ठापूर्वक राजमहल में आये। फिर सभी राजाओं के देखते ही देखते विशाल महोत्सवपूर्वक वीरसेन राजा ने उस कुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया। उसके बाद सभी राजाओं का वस्त्रादि से सत्कार करके उनको विदा किया। वे सभी भी लज्जा से श्याममुखी होते हुए अपने-अपने नगर की तरफ चले गये। कुमार भी कितने ही दिनों तक वहां रहा, फिर राजा ने उसे हाथी आदि वस्तुओं के द्वारा सम्मानित करके विदा किया। कुमार भी अपने नगर की और चला। मानो मूर्तिमान जयलक्ष्मी हो-ऐसी शृंगारसुन्दरी और परिवार के साथ कुमार अनुक्रम से अपनी नगरी में पहुँचा। वहां अकथनीय उत्साह और उत्सव के द्वारा राजा ने उसे प्रिया सहित नगर में प्रवेश करवाया। फिर अपने पुत्र राज्य की धुरी उठाने में धुरन्धर जानकर राजा को चारित्र लेने की अभिलाषा जागृत हुई। अतः राजा ने पुत्र को शिक्षा देते हुए कहा-“हे वत्स! विशुद्ध बुद्धि, श्रेष्ठ आचरण और शास्त्रों की पारगामिता के कारण तूं वृद्धावस्था के बिना भी वृद्ध के जैसा ही है। फिर भी कुछ योग्यता होने के कारण मैं तुम्हें उपदेश दे रहा हूं, क्योंकि योग्य वस्तु में क्या-2 संस्कार नहीं किया जाता? हे वत्स! यह राज्य अनेक कार्यों के समूह से व्याप्त है। सारा राजपरिवार केवल स्वार्थ में ही तत्पर और मुख पर मीठा बोलनेवाला होता है। करण्डक में रहे हुए सर्प की तरह यह राज्य निरन्तर सावधानता से सम्भालना पड़ता है अन्यथा तो यह स्वयं का विनाशक ही सिद्ध होता है। यह राज्य वानर की तरह अत्यन्त चपल होता है। उसे उन-उन योग्य गुणों के द्वारा नियम में रखना पड़ता है। वरना तो एक शाखा (राजा के वंश) से दूसरी शाखा (वंश) में जाते हुए उसे कौन रोक सकता है? पके हुए धान्यवाले श्रेष्ठ खेत की तरह वह राज्य प्रयत्नों के द्वारा रक्षणीय है, क्योंकि उसे उपद्रवित करने के लिए पशुओं की तरह दुष्ट मद से युक्त मनुष्य तैयार ही रहते हैं। उस राज्य में नये उद्यान की तरह निरन्तर न्यायधर्म
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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