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________________ 243/श्री दान-प्रदीप लेते हुए युद्ध करने के लिए अपनी चतुरंगिणी सेना तैयार की। इस अवसर पर नगर के लोग व सैनिक स्थान-स्थान पर इकट्ठे होकर परस्पर वार्तालाप करने लगे-"अहो! यह तो हर्ष के स्थान पर खेद उत्पन्न हो गया। भोजन के प्रारम्भ में ही छींक आ गयी। मांगलिक समय में लाठी पर लाठी मारने का समय आ गया कि जिससे इस कन्या के विवाह के उत्सव पर विश्व का संहार करनेवाले इस युद्ध का प्रारम्भ अकस्मात् हो रहा है। अहो! इस कन्या पर विधाता की कैसी दुरन्त प्रतिकूलता है? कि जिससे ऐसे हर्ष के समय ऐसा अशुभ हुआ है। जगत का क्षय करनेवाले इस युद्ध में हेतुभूत बनी हुई यह कन्या राजा के वंश में कालरात्रि की तरह उत्पन्न हुई प्रतीत होती है।" इस प्रकार कर्णों में करवत (तलवार) के समान उनके वचनों को सुनकर बुद्धिमान श्रृंगारसुन्दरी हृदय में खेदखिन्न होते हुए विचार करने लगी-"पापी प्राणियों में अग्रसर मेरी आत्मा को धिक्कार है, क्योंकि मेरे निमित्त से अपार प्राणियों का संहार करने के हेतु रूप इस रणसंग्राम का अवसर उपस्थित हुआ है। एक जीव के वध में निमित्त बना प्राणी नरक में जाता है, तो इतने मनुष्यों के वध का हेतु बनकर मैं किस गति में जाऊँगी? ये सत्यवादी लोग मेरी निन्दा कर रहे हैं, जो उचित ही है, क्योंकि आज मैं अपार पाप का कारण बनी इस प्रकार चिन्ता में लीन उसकी प्रशस्त बुद्धि विकास को प्राप्त हुई, क्योंकि स्त्रियों में इष्ट कार्य को सिद्ध करनेवाली तात्कालिक मति होती ही है। फिर उसने अवसरोचित कार्य करनेवाले बुद्धिनिधान मंत्री सुबुद्धि को व रत्नपाल कुमार को अपना मंतव्य एकान्त में बताया। फिर उसने हाथ ऊँचा करके सभी राजाओं को शान्त करते हुए कहा-“हे राजाओं! स्वस्थ होकर मेरी बात ध्यानपूर्वक सुनें। आपलोगों ने निरर्थक प्राणीवध का यह पापकार्य अचानक क्यों आरम्भ किया है? क्योंकि मैं किसी के साथ भी परिणय-संबंध नहीं करनेवाली हूं। मेरे निमित्त से विश्व का प्रलय करनेवाले इस युद्ध का प्रारम्भ होने जा रहा है। तो फिर मेरे पाणिग्रहण का उत्सव किस तरह योग्य हो सकता है? अतः पाप के कारण रूप मेरी देह को मैं अग्नि की ज्वाला से व्याप्त चिता में भस्मीभूत कर रही हूं।" इस प्रकार उन राजाओं को कहकर तथा मंत्री को आदेश देकर सेवकों के द्वारा काष्ठ की चिता तैयार करवायी। स्त्रियों की बुद्धि अगाध होती है। फिर स्नान करके देवपूजा आदि शुभ कार्य करके वह कन्या सभी राजाओं के देखते ही देखते चिता के समीप पहुंची। उस समय सुबुद्धि मंत्री ने सभी से कहा-“अत्यन्त साहसिक जो राजा इस चिता में प्रवेश करेगा, वही इस कन्या के साथ परिणय करेगा।"
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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