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________________ 242 / श्री दान- प्रदीप वर का वरण किया है ।" इस प्रकार कहकर सभी ने उसकी प्रशंसा की । वाद्यन्त्रों के शब्दों द्वारा आकाश व्याप्त | हो गया। पर उसे कुमारावस्था से युक्त रत्नपाल को वरता हुआ देखकर कई राजा अत्यन्त कुपित भी हुए । उन्होंने कहा - "पराक्रम के द्वारा दिशाओं पर आक्रमण करनेवाले और विशाल समृद्धि से युक्त हमारे विद्यमान रहते हुए इस बिचारे बालक की इस कन्या को वरने में क्या योग्यता है? अगर हमारे देखते हुए भी यह बकरे के समान कुमार कन्या को वरेगा, तो खेद की बात है कि हम जीते जी ही मरे हुए के समान हो जायंगे । इस कन्या के पिता ने पहले से ही इस कन्या को सिखा दिया होगा कि तुझे इसी कुमार को वरना है । अन्यथा विशाल ऋद्धि से युक्त हम सभी को छोड़कर यह कन्या इसे कैसे वरती ? हृदय में दुष्ट अभिप्राय को धारण करते हुए इस शत्रु रूपी वीरसेन राजा ने हमें केवल विडम्बना देने के लिए ही यहां बुलाया है । अतः वीरसेन और रत्नपाल को मूल से ही उखाड़कर गरीब मनुष्यों के घर से मणि की तरह इस कन्या को निकालकर हम ले जायंगे ।" इस प्रकार विचार करके उन सभी राजाओं ने अपनी तीस 'अक्षोहिणी सेना इकट्ठी करके युद्ध की तैयारी करते हुए तिरस्कारपूर्वक कुमार से कहा - " अरे बालक रत्नपाल! तूं वरमाला को छोड़ दे। क्या तूं नहीं जानता कि इस कन्या ने तुझे वरकर अपने काल को बुलावा दिया है। गुण- अगुण की परीक्षा करने में शून्य चित्तवाली इस कन्या ने तेरे गले में वरमाला डाली, इससे तूं गर्वयुक्त बनकर व्यर्थ ही उद्धत गर्दनवाला मत बन । हमारे पास रही हुइ इस कन्या को स्वीकार करने की तेरी इच्छा व्यर्थ ही है। सिंह के गले में रही हुई केसराशि को लेने की कौन इच्छा कर सकता है? अतः तूं वरमाला यहीं छोड़ दे। अन्यथा इस तलवार के द्वारा तुझे व इस कन्या को यहीं का यहीं कमलनाल की तरह काट देंगे।" इस प्रकार की उनकी तिरस्कारयुक्त वाणी को सुनकर रत्नपाल ने हंसकर कहा - "इस कन्या ने आपलोगों को नहीं वरा, तो आपलोग व्यर्थ ही मुझ पर कोप क्यों करते हैं? जिस विधाता ने आप सब को ऐसे दुर्भाग्य के द्वारा दग्ध शरीरवाला बनाया है, उस विधाता पर कोप क्यों नहीं करते? परस्त्री की कामना रूपी पाप के द्वारा तुम सभी की आत्मा मलिन हो गयी है। अतः तुम सभी को शुद्ध बनाने के लिए अभी तो मेरी असिधारा रूपी तीर्थ ही तुम सभी के लिए शरणभूत है । " इस प्रकार कहकर कुमार भी तत्काल युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। तेज के स्थानभूत क्षत्रिय तिरस्कार को कभी सहन नहीं करते। वीरसेन राजा ने भी जामाता का पक्ष 1. एक अक्षोहिणी में 21870 रथसवार, 21870 गजसवार, 65610 घुड़सवार और 109350 पदाति अर्थात् पैदल सैनिक होते हैं।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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