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________________ 97/श्री दान-प्रदीप कर लिया। तब वह हर्षित होती हुई अपने घर लौट गयी। राजा के साथ हुई बातचीत उसने पर्वतक को बतायी। यह सुनकर दुगुने उत्साह के साथ गर्व से अकड़ता हुआ पर्वतक नारद के साथ वाद करने के लिए वसु राजा की राजसभा में आया। वहां सत्य रूपी दूध और असत्य रूपी जल का भेद करने में हँस-चोंच के समान बुद्धि को धारण करनेवाले अनेक सभासद मौजूद थे। जैसे गगन रूपी आंगन को दिनकर अलंकृत करता है, उसी प्रकार स्फटिक शिला की वेदिका पर रहे हुए सिंहासन को वसु राजा ने अलंकृत किया। फिर नारद और पर्वतक ने अपना-अपना पक्ष रखते हुए राजा से निवेदन किया कि आप जो सत्य है, वह हमें कहें। उस समय वहां रहे हुए वृद्ध सभासदों ने भी कहा-"हे स्वामी! इस विवाद का निर्णय अब आपके ऊपर निर्भर है। जैसे आकाश और पृथ्वी का साक्षी सूर्य है, वैसे ही इन दोनों के एकमात्र साक्षी आप हैं। हे स्वामी! अग्नि आदि दिव्य सत्य से ही होते हैं, सत्य के कारण ही मेघ वृष्टि करते हैं, सत्य से ही देव तुष्ट होते हैं, आधार-रहित यह पृथ्वी भी सत्य से ही स्थिर है और ये सभी लौकिक और लोकोत्तर धर्म भी सत्य से ही प्रवर्तित होते हैं। मंत्र से स्तम्भित की तरह जो यह आपका सिंहासन आकाश में बिना किसी अवलम्बन के स्थिर रहा हुआ है, वह सत्य के प्रभाव से ही है। इस जगत् में एकमात्र सत्य ही निश्चल है, अन्य सब नश्वर है। जगत में आपकी ख्याति भी सत्यवादी के रूप में ही है। हे पृथ्वीपति! आप ही सर्व प्रजाजनों को सत्य के मार्ग पर स्थापित करते हैं। अतः अब हम आपसे ज्यादा क्या कहें? आपके सत्यव्रत के लिए जो उचित हो, वही निर्णय करें। विद्वानों के मध्य श्रेष्ठ हे राजन्! सिद्ध, गन्धर्व, राज्य के अधिष्ठायक देव और सभी लोकपाल देव अदृश्य रहकर सुन रहे हैं। अतः आप सत्य वचन कहें।" उनके इस प्रकार के वचनों को अनसुना करके अपनी प्रसिद्धि की भी अवगणना करके राजा ने असत्य साक्षी देते हुए कहा-"गुरुदेव ने अज शब्द का अर्थ बकरा किया था।" ___उसके असत्य वचनों से क्रोधित होते हुए राज्य की अधिष्ठायिका देवियों ने उस स्फटिक शिला की वेदिका को चूर-चूर कर दिया। जिससे वसु राजा पाप से भारी हो गया हो और नरक में जाने के लिए प्रस्थान कर रहा हो, इस प्रकार तत्काल पृथ्वी पर गिर गया। ___गुरुदेव की व्याख्या को असत्य रूप से प्रकट करने रूप पाप से मलिन यह वसु न तो राजा के लिए, न तो राज्य के लिए योग्य है, न जीने के योग्य है" इस प्रकार उच्च स्वर में बोलते हुए देवों ने उसे गिरा दिया और मरकर अपने पापों के फलस्वरूप वह नरक में गया। उस अपराधी के राजसिंहासन पर उस वसु राजा का जो-जो पुत्र बैठा, क्रुद्ध देवों ने उन सभी को मार डाला। इस प्रकार उसके आठ पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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