SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दानफलविचार २५९ कूप--भू, शिला, मट्टीके खोदनेसे उत्पन्न कूप जिसप्रकार अमृतके समान मिष्ट जलको प्रदान करता है, इसी प्रकार दानियोंकी वृत्ति होनी चाहिये। , द्रुम स्वयं धूपमें खडे होकर दूसरोंको छाया प्रदान करते हुए दूसरोंके उपकारकेलिए फल छोडते हैं ऐसे वृक्षोंके समान दातावोंकी वृत्ति होनी चाहिये। __ दत्तद्रव्याग्रहणफल यो देवाधर्पितं द्रव्यं नादत्ते न च बांछति । सत्यकारधनं दत्तं मुक्त्य सेन विदुर्बुधाः ॥ २११ ॥ अर्थ-जो मनुष्य देव व ऋषियोंको दानमें दिए हुए द्रव्यको ग्रहण नहीं करता है और न चाहता है उसने दान नहीं दिया, अपितु मुक्तिलक्ष्मीके साथ विवाह करनेके लिए संचकार धन [साही] दिया ऐसा विद्वान् लोग कहते हैं ॥ २११ ॥ . दत्तद्रव्यग्रहणफल । ... येन यस्मै धनं दात्रा दत्तं तेनाहतं पुनः । तत्सर्वमपि बंधूनामुत्सवे दत्तवस्तुबत् ॥ २१२॥ ___ अर्थ-यदि किसीको दिए हुए द्रव्यको उस दानी ने वापिस लिया तो वह दान नहीं है, बंधुओंके घरमें उत्सवके समय दी हुई सहायता है ॥ २१२ ॥ . यो दत्तद्रव्यमादत्ते तस्योत्तरफलं न च । उप्तबालफलो दातमूढवद्धार्मिको भवेत् ॥ २१३ ।। अर्थ-जो मनुष्य दिए हुए द्रव्यको ग्रहण करता है, उसको उस दानका उत्तर फल बिलकुल नहीं हो सकता है । उसकी हालत ठीक
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy