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________________ दानफलविचार २०९ रोगोंको दूर करता है । धर्मगुरुके समान पापको दूर करता है, विशेष क्या ? साक्षात् माताके समान संरक्षण करता है ॥ ८८ ॥ भूतादावपि वज्रपंजरवदन्ध्यादौ तरंडो यथा । शीते वह्निवष्णिके हिमवद्रोगेऽपि पीयूषवत् || ज्ञाने वागिव दर्शने तरणिवयुद्धे जयं दुर्जये । कुर्याद्धावति वारि वाघविपिनं भस्मीकरोत्यग्निवत् ॥ ८९ ॥ अर्थ - सत्पात्रदानसे उपार्जित पुण्यफळ भूतप्रेतादिक की बाधामें वज्रपंजरके समान रक्षण करता है, समुद्र में तरणसाधन के समान बचाता है, कडक शीतमें अग्निके समान, उष्णकाल में चंद्रके समान, रोगमें अमृत के समान, ज्ञानमें सरस्वती के समान, दर्शन में सूर्य के समान, दुर्जय युद्ध में जयलक्ष्मी के समान संरक्षण करता है । जल के समान पापों को धो डालता है । पापरूपी जंगलको अग्निके समान जला देता है ॥ ८९ ॥ पुण्यस्वरूप. शुक्त्यतः स्थितमुक्तेव | करंडस्थितरत्नवत् ॥ अब्दावृतार्कवत्पुण्यं । कुंभांत स्थितदीपवत् ॥ ९० ॥ अर्थ - वह पुण्य सीपके अंदर छिपी हुई मोतीके समान, करण्डमें स्थित रत्नके समान, बादलसे छिपे हुए सूर्य के समान, कुंभके अंदर रक्खे हुए दीपक के समान इस आत्मप्रदेश में अंतलीन होकर रहता है ॥ ९० ॥ पुण्यकी प्रबलता. २ न हन्यते तथा पुण्यं दुष्कृतेन मनागपिः । गाधभूमिगतैरंडबीजवच्छ्रेणिको यथा ॥ ९१ ॥ अर्थ - यदि इस जीवने विपुल पुण्यका संचय किया तो उस पुण्य २७
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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