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________________ २०८ दनिशांसनम् अर्थ-कोई उत्तमदानी पनसके फलके समान रहते हैं। पनसके फलमें यह विशेषता है कि वह फल पहिलेसे पुष्प नहीं छोडा करता, एकदम फल होता है और फलके बाहरका भाग एकदम कांटोंसे भरा हुआ रहता है । परंतु अंदर फल बहुत व मिष्ट रहता है । एवं खानेवालोंको तृप्त कर देता है । इसी प्रकार उत्तम दाता भी रहते हैं। पनस जिस प्रकार पहिलेसे फूल छोडकर लोगोंको फल होनेकी बात प्रकट नहीं होने देता है, उसी प्रकार उत्तमदाता भी ' मैं दानी हूं' इस प्रकार लोगोंको डिंडोरा पीटकर नहीं बतलाया करते हैं । अनेक कंटक व आपत्तियोंसे थिरे रहनेपर भी दूसरोंको सत्फल ही देनेवाले, उपकार करनेवाले एवं पात्रोंको तृप्ति करनेवाले वे दानी रहते हैं ॥ ८६ ॥ सकुसुमफलवन्त आम्राः फलानि यावच्च संति तावदिमे । तरतमफलानि ददते यथा तथा दानिनो विराजते ॥८७॥ __ अर्थ-जैसे आम्रका वृक्ष पहिले फूल छोडकर बादमें फलको छोडता है अतएव उममें अनेक प्रकारके तरतम फल होते हैं। इसी प्रकारके भी दानी लोकमें होते हैं ॥ ८७ ॥ सत्पात्रदान फल. राजेवामलसौख्यदार्थमनिशं दत्ते च दोषान्व्यथा । मंत्रीवाशु तिरस्करोति मुगुणान्व्यक्तीकरोतीव सन् ॥ क्षुद्रान्यक्कुरुतेऽवद्भिषगिवाशेषामयान्मोचय-। त्येनो भेदयतीति धर्मगुरुवन्मातेव रक्षत्ययः ॥ ८८ ॥ ___ अर्थ-सत्पात्रदानसे उपार्जित पुण्य इस मनुष्यको राजाके समान अनेक उत्तम पदार्थीको सदा प्रदान करता है। मंत्रीके समान दोष व चिंताको दूर करता है । सज्जनोंके समान सुगुणोंको व्यक्त करता है। सूर्यके समान क्षुद्रोंका तिरस्कार करता है। वैद्यके समान समस्त
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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