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________________ दानफलविचार २०७ आहारदानमें सर्वदान समस्तपो दया धर्मः संयमो नियमो यमः । सर्वे तेन वितीयते येनाहारो वितीर्यते ॥ ८३ ॥ अर्थ-जिस दाताके द्वारा आहारदान दिया जाता है उसके द्वारा समता, तप, दया, धर्म, नियम व यमरूपी संयम आदि सभी गुण दिये जाते हैं ऐसा समझना चाहिये । आहार ग्रहण करनेसे इन गुणों की वृद्धि होती है ॥ ८३ ॥ गुरुभक्तिफल गुरुपदनतेस्सुगोत्रं तदुपास्तेरसर्वसेव्यता दानात् । भोगकरी श्रीः पूता कीर्तिभक्तिभवंद्गुरून् भजताम् ।।८४॥ अर्थ-गुरुवोंके चरणमें भक्तिसे नमस्कार करनेसे उच्च गोत्रका बंध होता है । उनकी उपासना करनेसे स्वतः सबके द्वारा उपास्य होता है । दानसे भोगने योग्य अलोट संपत्ति मिलती है । गुरुवोंकी पूजा करनेसे पवित्र कीर्ति, घ यथार्थ भक्ति प्राप्त होती है ॥ ८४॥ सम्यग्दृष्टिज्ञानचारित्रवद्भ्यो । योगिभ्यो यैर्दत्तमाहारदानम् ॥ ते सदृष्टिज्ञानचारित्रवंत स्तेषामात्मा स्यात् च्युताब्दो यथार्कः ॥ ८५ ॥ अर्थ- जो दाता सम्यग्दर्शनज्ञान चारित्रसे अलंकृत योगियोंको आहारदान देते हैं वह स्वयं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रको धारण करते हैं। उन दाताबोंकी आत्मा मेघके आच्छादनसे रहित सूर्यबिंबके समान निर्मल होती हैं । ८५ ॥ उत्तमदाता अपुष्पफलिनः कंटकावृतानल्पसत्फलाः । तृप्तिकहानिनः केचिदुत्तमाः पनसा यथा ।। ८६ ।।
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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