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________________ दातृलक्षणविधिः १७३ अंतराय दूर हो गए हैं और अनेक निर्मल गुणोंको धारण करनेवाला है उसे उत्तमदाता कहते हैं ॥ ३ ॥ वैद्या नृप्रकृतिबथानलविधि ज्ञात्वैव रक्षन्ति तान् । सर्वेऽष्टादशधान्यलोभमतयः क्षेत्रं यथा कार्षिकाः ॥ गां धारार्थनना अवंति च यथा रक्षेयुरुर्वीश्वराः । नित्यं स्वस्थलवर्तिनो वृषचितो धर्म च धर्माश्रितान् ॥१॥ अर्थ-जिस प्रकार वैद्य रोगियोंकी प्रकृति व उदराग्निको जानकर उनके योग्य औषधि वगैरह देकर उनकी रक्षा करते हैं, संपूर्ण अठारह प्रकारके धान्य के लोभसे जिस प्रकार किसान लोग खेतकी रक्षा करते हैं, ग्वाले लोग दूधके लिए गायकी रक्षा करते हैं, राजा लोग अपने राज्यकी स्थिति के लिए मनुष्योंकी रक्षा करते हैं, इसी प्रकार धर्मात्मा दाता धर्म व धर्मात्माओंकी सदा रक्षा करते हैं । वे ही उत्तम दाता कहलाते हैं ॥ ४ ॥ . सप्तगुण. श्रद्धा तुष्टिभक्तिर्विज्ञानमलुब्धता क्षमा शक्तिः। यस्यैते सप्तगुणास्तं दातारं प्रशंसन्ति ॥ ५॥ अर्थ-जिस दाताके हृदयमें श्रद्धान, भाक्ति, संतोष, दानविधिका ज्ञान, लोभराहित्य, क्रोधादिक कषायोपशमरूपी क्षमा, व शक्ति इस प्रकार सप्तगुण मौजूद हैं उसीको उत्तम दाताके रूपसे कहते हैं ॥५॥ सप्तगुणलक्षण. अंदास्तिक्यमतिस्सतुष्टिरमलानंदम्तु भक्तिर्गुरी- । स्सेवालोलुपता विधौ कुशलता विज्ञानमर्थव्यये । १ श्रद्धा भक्तिरलोभत्वं दया शक्तिःक्षमापरा । विज्ञानं चेति सप्तैते गुणाः दातुः प्रकीर्तिताः ।। म
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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