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________________ दानशासनम् AnAARAana - - दातृलक्षणविधिः प्रणम्यादिजिनं भक्त्या करणत्रयलक्षितम् । पात्रदानफलं सम्यग्वक्ष्येऽहं दातृलक्षणं । १ ॥ अर्थ--भगवान् आदिनाथ स्वामीको नमस्कार कर मनोवाकायके शुद्धरूप लक्षणको धारण करनेवाले दाता के लक्षण व पात्रदान के फलको अच्छीतरह कहेंगे ऐसी आचार्य प्रतिज्ञा करते हैं ॥१॥ दातलक्षण. सदा मनःखदनिदानमानान्विनोपरोपं गुणसप्तयुक्तः । त्रिकालदावप्रमुदैहिकार्थी न तं च दातारमुशंति संतः॥ अर्थ-जो व्यक्ति दानकार्यमें " आहा" जन्मभर कमाया हुआ धन मेरे हाथसे जाता है ! इसप्रकार मनमें खेद नहीं करता है, जो दानके बदलेमें कुछ चाहता नहीं, अभिमान व परप्रेरणासे रहित हो कर दान देता है, और दाताके लिये सिद्धांतशास्त्रमें कहे हुए सप्त गुणोंसे युक्त है । जिसे भूत भविष्यद्वर्तमानकाल-संबंधी दातारोंके प्रति श्रद्धा है व ऐहिक सुखकी इच्छा नहीं, उसे ऋषिगण उत्तम दाता कहते हैं ॥ २॥ विनयवचनयुक्तः शांतिकांतानुरक्तो । नियतकरणवृत्तिः संघजातप्रसत्तिः ॥ शमितमदकषायः शांतसतिरायः। स विमलगुणशिष्टो दातृलोके विशिष्टः ॥ ३ ॥ अर्थ-जो विनयवचनसे युक्त है, शांतिरूपी स्त्रीसे अनुराग रखने वाला है, इंद्रियोंको जिसने वशमें कर लिया है, जिसे जनसंघमें प्रसनता है, मद और कषायको जिसने शांत किया है एवं जिसके सर्व
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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