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________________ द्रव्यलक्षण है उनसे कृषिकी वृद्धि होती है, उससे प्रजावोंके लिये उपयोग होता है । राजा उन धान्योंसे प्रजा व सैनिकोंका पालन करता है । इसी प्रकार धार्मिक सज्जन धर्मवृद्धि के लिये जिन नवविध उपचारोंसहित दानादिक क्रिया करते हैं उससे धर्मकी वृद्धि होती है । और उस धर्म से गुरुजन, प्रजा, राजा, सैनिक आदि सबको सुख मिलता है ॥ २३ ॥ मतं समस्तै ऋषिभिर्यदाईतेः । प्रभासुरात्मावनदानशासनम् ॥ मुदे सतां पुण्यधनं समर्जितुं । धनादि दद्यान्मुनये विचार्य तत् ॥ २४ ॥ १३३ अर्थ – समस्त आईत ऋषियोंके शासनके अनुसार यह दानशासन - प्रतिपादित है । इसलिए पुण्यधनको कमानेकी इच्छा रखनेवाले श्रावक उत्तम पात्रोंको देखकर उनके संयमोपयोगी धनादिक द्रव्योंको विचार कर दान देवें ॥ २४ ॥ इति द्रव्यशोधनविधिः
SR No.022013
Book TitleDan Shasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherGovindji Ravji Doshi
Publication Year1941
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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