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________________ सिआ, निरइआरपारगे सिआ। अर्थ : अरहन्त भगवन्तों और सद्गुरुओं की प्राप्ति होने पर मैं उनकी सेवा (उपासना) के योग्य होऊँ, उनकी आज्ञा का पालन करने के योग्य होऊँ, 'उनकी आज्ञा का पालन में ही मेरा उद्धार है', इस तरह की दृढ़ प्रतीति सहित मैं उनके प्रति बहुमान, भक्ति एवं समर्पणभाव वाला होऊँएवं उनकी आज्ञा का निरतिचार (दोष रहित) पालन करनेवाला होऊँ ।।१२।। मूल - संविग्गो जहासत्तीए सेवेमि सुकडी अणुमोएमि सव्वेसिं अरहंताणं अणुट्ठाणं, सब्वेसिं सिद्धाणं सिद्धभावं, सब्वेसिं आयरियाणं आयारं, सव्वेसिं उवज्झायाणं सुत्तप्पयाणं, सव्वेसिं साहूणं साहुकिरिअं ॥१३॥ अर्थ : मैं मुक्ति का अभिलाषी होकर अपनी शक्ति के अनुसार सुकृत का सेवन करता हूँ। समस्त अरहन्त भगवन्तों के लोकोत्तर धर्मदेशना आदि अनुष्ठानों की अनुमोदना करता हूँ। समस्त सिद्ध भगवन्तों के सिद्धभाव, अव्याबाधस्थिति, अनन्त अक्षय सुख, स्फटिक के सद्दश निष्कलंक शुद्ध आत्मस्वरूप आदि की अनुमोदना करता हूँ। समस्त आचार्यों के पांच आचारों की अनुमोदना करता हूँ। समस्त उपाध्यायों के सूत्रप्रदान की अनुमोदना करता हूँ। समस्त साधुओं की अहिंसा, संयम, तप, ध्यान, अध्ययन आदि-आदि शुभ क्रियाओं की अनुमोदना करता हूँ ।।१३।।। ____ मूल - सव्वेसिं सावगाणं मुक्खसाहणजोगे, सबेसिं देवाणं सब्वेसिं जीवाणं होउकामाणं कल्लाणासयाणं मग्गसाहणजोगे ॥१४॥ ___ अर्थः समस्त श्रावकों के देवभक्ति, गुरुभक्ति, धर्मराग, दान, व्रत, नियम आदि मोक्ष के साधनभूत प्रवृत्तिओं की अनुमोदना करता हूँ। आसन्नभव्य अतएव विशुद्ध आशयवाले समस्त इन्द्रादि देवों के और समस्त जीवों के मोक्ष मार्ग के साधनयोगों की (मार्गानुसारित्वादि कुशल व्यापार की) अनुमोदना करता हूँ। ।।१४।। मूल - होउ मे एसा अणुमोअणा सम्म विहिपुब्विआ, सम्म सुद्धासया, सम्म पडिवत्तिरुवा, सम्मं निरइयारा, परमगुणजुत्तअरहंताइसामत्थओ। अचिंतसत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो वीअरागा सवण्णू परमकल्लाणा परमकल्लाणहेऊ सत्ताणं ॥१५॥ अर्थः लोकोत्तर गुणों से विभूषित श्री अरहन्त सिद्ध भगवान आदि के सामर्थ्य के प्रभाव से मेरी यह पूर्वोक्त अनुमोदना आगमानुसार सम्यक् विधि वाली हो, मेरी यह अनुमोदना कमविगम से शुद्ध आशय वाली हो, सम्यक् स्वीकार वाली हो अर्थात् अमल में आने योग्य हो और वह पालन करने में सम्यक् प्रकार से निरतिचार हो। वे अरिहंतादि भगवान अचिन्त्यशक्ति वाले हैं, वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं, परम श्रामण्य नवनीत
SR No.022004
Book TitleSramanya Navneet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherRamchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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