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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणियव्वा तं जहा बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए ॥ ३७॥ सूत्र. 11 (६५) थूलगभुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नते तं जहा कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगभुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवासे कूडलेहकरणे ॥३८॥ सूत्र. 21 __ (६६) थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिनादाणे दुविहे पनत्ते तं जहा सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्ससमणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइक्कमणे कूडतुलकूडमाणे तप्पडिरुवगववहारे ॥ ३९॥ सूत्र. 31 (६७) परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोस वा पडिवजइ से य परदारगमणे दुविहे पनते तं जहा ओरालियपरदारगमणे वेउब्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागभणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे ॥४०॥ सूत्र. 41 (६८) अपरिमियपरिग्गहं सभणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिमाणं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नते तं जहा सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य, इच्छापरिमाणस्ससमणोवासएणं इमे पंच अइयाराजाणियव्वा तंजहाधणधनपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे ॥श्रीआवश्यक सूत्र ॥ ५. सागरजी म. संशोधित १४ For Private And Personal Use Only
SR No.021042
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size7 MB
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