SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ चिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वष्टिओहं तुम्भहं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसारकंताराओ साहट नित्थरिस्सामि तिकट्ठ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि निथारगपारगाहोह ॥ ३५॥ सूत्र. 81 • पंचमं अज्झयणं समतं. ॥छटुं अज्झयणं पच्चक्खाणं॥ (६३) तत्थ समणोवासओ पुवामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मन उवसंपज्जइ नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अनउत्थिर वा अनउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुवि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पयाउँ वा नन्नत्य रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं| बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्ते पसत्यसमत्तमोहणियकम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पत्रते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहां-संका कंखा वितिगिच्छ। परपासंडपसंसा परपासंडसंथवे ॥ ३६॥ सूत्र. 11 (६४) थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नतं तं जहा संकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावजीवाए पच्चक्खाखाइ णो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा ॥श्रीआवश्यक सूत्र । [पू. सागरजी म. संशोधित || For Private And Personal Use Only
SR No.021042
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy