SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ते गम्मा, णोऽकेवली ताई पासती। ओहिनाणी वियाणेए, णो पासे मणपज्जवी ॥९॥ ता पुरिसं संघटुंती, कोण्हगंमि तिले जहा। सव्वेसु सुसूरावेइ, रंतु मत्ता महन्नि (न्ति )या ॥१००॥ चंकम्मंतीइगाढाई, काइयं वोसिरंतिया। वावाइजा य दो तित्रि, सेसाई परियावई ॥१॥ पायच्छित्तस्स ठाणाई, संखाईयाई गोयमा! अणालोइयंतो हु एक्कंपि, ससलमरणं मरे ॥२॥ सयसहस्सनारीणं, पोट्टे फालित्तु निग्धिको सत्तट्ठमासिए गब्भे, चडफडते णिगितई ॥३॥जंतस्स जत्तियं पावं, तित्तियं तं नवं गुणोएकसित्थीपसंगणं, साहू बंधेज मेहुणे ॥४॥ साहणीए सहस्सगुणं, मेहुणेकसिं सेविए। कोडीगुणं तु बिजेणं, तइए बोही पणस्सई ॥५॥ जो साहू इथियं दटुं, विसयट्टो रामेहिई। बोहिलाभा परिभट्ठो, कहं वराओस होहीइ? ॥६॥ अबोहिलाभियं कम्म, संजओ अह संजई। मेहुणे सेविए आऊउक्काए पबंधई ॥७॥ जम्हा तीसुवि एएसु, अवरझंतो हु गोयमा!। उम्मग्रमेव ववहारे, मग्गं निट्ठवइ सव्वहा ॥८॥ भगवं! ता एएण नाएणं, जे गारथी मउक्कडे । रतिंदिया ण छड्डंति, इत्थीयं तस्स का गई? ॥९॥ ते सरीरं सहत्थेणं, छिंदिऊणं तिलतिलोअग्गीए जइवि होमंति, तोऽवि सुद्धी ण दीसई ॥११०॥ तारिसोवि णिवित्तिं सो, पदारस्स जई करेसावगधम्म च पालेइ, गई पावेइ मज्झिमं ॥१॥ भयवं! सदारसंतोसे, जइ भवे मझमं गईता सरीरेऽवि होमतो, कीस सुद्धिं ण पावई? ॥२॥ सदारं परदारं वा, इत्थी पुरिसो व गोयमा!। मंतो बंधए पावं, णो णं भवइ अबंधगो ॥३॥ सावगधम्म जहुत्तं जो, पाले परदारगं चए। जावजीवं तिविहेणं, तमणुभावेण सा गई ॥४॥ णवरं नियमविहूणस्स, परदारगमण(ग)स्स यो अणियत्तस्स ॥ श्री महानिशीथसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy