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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भवे बंध, णिवित्तीए महाफलं ॥५॥ सुथेवाणपि निवित्तिं, जो मणसावि विराहए। सो मओ दुग्गई गच्छे, मेघमाला जहऽज्जिया ॥६॥ मेघमालज्जियं नाहं, जाणिमो भुवणवंधव!। मणसावि अणुनिव्वत्ति, जा खंडिय दुग्गड़ गया ॥७॥ वासुपुज्जस्स तित्थंमि, भोला कालगच्छवी। मेघमालज्जिया आसि, गोयमा! मणदुब्बला॥८॥ सा नियमोगासे पक्खं दाउ, काउंभिक्खा य निग्गया। अनओ एस्थिणी सारमंदिरोवरि संठिया॥९॥ आसन्न मंदिरं अत्रं, लंधित्ता गंतुमिच्छगा। भणसाभिनंदेवं जा(व), ताव पजलिया दुवे ॥१२०॥ नियमभंग तयं सुहम, तीए तत्थ णं किंदिया तंनियमभंगदोसेणं, डज्झित्ता पढभियं गया ॥१॥ एवं नाउं सुहमंपि, नियमं मा विराहिह। जेच्छिया अक्ख्यं सोक्खं, अणंतं च अणोवमं ॥२॥ तवसंजमे वएसुंच, नियमो दंडनायगो। तमेव खंडमाणस्स, ण वए णो व संजमे ॥३॥ आजम्मेणं तु जं पावं, बंधेजा मच्छबंधगो। वयभंगं काउमणस्स, तं चेवऽगुणं मुणे ॥४॥ सयसहस्सं सलद्धीए, जोवसामित्तु निक्खमे। वयं नियमखंडतो, जं सो तं पुत्रमज्जिणे ॥५॥ पवित्ता य निवित्ता य, गारत्थी संजमे तवे। जमणुट्ठिया तयं लाभ, जाव दिक्खा न गिहिया॥६॥ साहुसाहुणीवग्गेणं, विनायव्वमिह गोयमा! जेसिं मोत्तूण ऊसासं, नीसासं नाणुजाणियं ॥७॥ तमवि जयणाए अणुत्रायं, विजयणाए ण सव्वहा। अजयणाइ ऊससंतस्स, कओ धम्मो? ओ तवो ?॥८॥ भयवं! जावइयं दिटुं, तावइयं कहऽणुपालिया। जे भवे अवीयपरमत्थे, किच्चाकिच्चमयाणगे?॥९॥ एगंतेणं हियं वयणं, गोयम! | दिस्संति केवली । णो बलमोडीइ कारेंति, हत्थे घेत्तूण जंतुणो ॥१३०॥ तित्थयरभासिए क्यणे, जे तहत्ति अणुपालिया। सिंदा || श्री महानिशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
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