SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुक्कोसियट्ठिति। वे तो तिरिजोणीए, हिंडेजा चउगईएँ सो ॥३॥ से भयवं! पावयं कम, परं वेइय समुद्धरे। अणणुभूए णो मोक्खं, पायच्छित्तेण किं तहिं? ॥४॥ गोयमा! वासकोडीहि, जं अणेगाहिं संचियो तं पच्छित्तवीपुढे, पावं तुहिणं व विलीयइ ॥५॥ घणघोरंघयारतमतिमिस्सा, जह सूरस्स गोयमा!। पायच्छित्तरविस्सेयं, पावं कम पणस्सए ॥६॥ णवरं जइ तं पच्छित्तं, जह भणियं तह समुद्धरे( बलवीरिय) असदभावो अणिगृहियपुरिसयारपरक्कमे ॥७॥अन्नं च काउ पच्छित्तं, सव्वथेवं णमणुच्चरे जो दरुद्धियसल्लो यऽप्येसो, दीहं चाउग्गइयं अडे ॥८॥भयवं! कस्सालोएज्जा?, पच्छित्तं को व देज्ज वा? कस्स व पच्छित्तं देना?, आलोयावेज वा कह? ॥९॥ गोयमालोयणं ताव, केवलीणं बहूसुवि। जोयणसएहिं गंतूण, सुद्धभावेहि दिन्जए ॥१०॥ चउनाणीणं त्याभावे, एवं ओहि मईसुए। जस्स विमलयरे तस्स, तारतम्मेण दिज्जई॥१॥ उस्सग्गं पन्नवितस्स, उस्सग्गे पट्टियस्स योउस्सग्गरुइणो चेव, सव्वभावंतरेहिं णं ॥२॥उवसंतस्स दंतस्स, संजयस्स तवस्मिणो।समितीगुत्तिपहाणस्स, दढचारित्तस्सासढभाविणो ॥३॥ आलोएज्जा पडिच्छेजा, दिज्जा दाविज वा परं । अहन्निसं तदुद्दि, पायच्छित्तं अणुच्चरे ॥४॥ से भयवं! कित्तियं तस्स, पच्छित्तं हवइ निच्छियं?। पायच्छित्तस्स ठाणाई, केवइयाई? कहेहि मे ॥५॥ गोयमा! जं सुसीलाणं, समणाणं दसणअह 31 खलियागयपच्छित्तं, संजई तं नवगुणं ॥६॥ एक्का पावइ पच्छित्तं, जई सुसीला दढव्वया। अह सीलं विराहेजा, ता तं हवइ सयगुणं ॥७॥ तीए पंचेंदिया जीवा, जोणीमझे निवासिणो । सामनं नव लक्खाई, सव्वे पासंति केवली ॥८॥ केवलनाणस्स 10 श्री महानिशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021041
Book TitleAgam 39 Chhed 06 Mahanishith Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages239
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_mahanishith
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy