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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चत्तारि य एकसत्तरे जोअणसए छच्च् एगूणवीसइभाए जोअणस्स किंचिविसेपूणे आयामेणं पं०, तीसे घणुपद्वे दाहिणेणं चोदस|| जोअणसहस्साई पंच अट्ठावीसे जोअणसए एक्कारस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं, उत्तभरहस्सणं भंते! वासस्स/ करिसए आयारभावपडोयारे पं०?, गो०! बहुसमरमणिजे भूमिभागे पं० से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव कित्तिमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव, उत्तड्डभरहे णं भंते! वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पं०? गो०! ते णं मणुआ बहुसंध्या जाव अपेगइआ सिझंति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ॥१६॥ कहिं णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्वभरहे वासे उसभकूडे णामं पव्वए पं०? गो०! गंगाकुंडस्सपच्चत्थिमेणं सिंधुकुंडस्सपुरच्छिमेणंचुल्लहिमवतस्सवासहरपव्वयस्सदाहिणिले णितंबे एत्थणंजंबुद्दीवे उत्तड्डभरहे वासे उसहकूडे णामं पव्वए पं० अट्ठ जोअणाई उड्डेउच्चत्तेणं दो जोयणाई उव्वेहणं मूले अट्ठ जोअणाई विक्खंभेणं मझेछ जोअणाई विक्खंभेणं उवरि चत्तारिजोयणाई विक्खंभेणं मूले साइरेगाइं पणवीसं जोअणाई परिक्खेवेणं मझे साइरेगाइं अट्ठारस जोअणाइं| परिक्खेवेणं उवरि साइरेगाई दुवालस जोअगाई परिक्खेवेणं वाचनान्तरं मूले बारस जोअणाई विक्खंभेणं मझे अह जोअणाई विक्खंभेणं उप्पिं चत्वारि जोअणाई विक्खंभेणं मूले साइरेगाइं सत्तत्तीसं जोअणाई परिक्खेवेणं मज्झे सातिरेगाइं पणवीसंजोयणाइं| परिक्खेवेणं उप्पिं साइरेगाई बारस जोअणाई परिक्खेवेणं, मूले विच्छिण्णे माझे संखित्ते उथि तणुए, गोपुच्छासंठाणसंठिए सव्वजंबूणयामए अच्छे सण्हे जाव पडिरूवे, से णं एगाए पउमवरवेइआए तहेव जाव भवणं कोसं आयामेणं अद्धकोसं विक्खंभेणं || ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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