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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देसऊणं कोसं उ8उच्चतेणं अट्ठो तहेव, उप्पलाणि उमाणि जाव उसमे अएत्थ देवे महिड्डीए जाव दाहिणेणं रायहाणी तहेव मंदरस्स|| पव्वयस्स जहा विजयस्स अविसेसियं ॥१७॥ जंबुद्दीवेणं भंते! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पं०? गो०! दुविहे काले पं० २०ओसप्पिणीकाले अउस्सप्पिणीकाले अ, ओसप्पिणीकालेणंभंते! कतिविहे पं०?, गो०! छव्विहे पं० २०-सुसमसुसमाकाले सुसमा० सुसमदुस्सामा० दुस्समसुसमा० दुस्समा० दुस्समदुस्समा०, उस्सप्पिणीकालेणंभंते! कतिविहे पं०? गो०! छविहे पं० २०-दुस्समदुस्समा जाव सुसमसुसमाकाले, एगमेगस्सणं भंते! मुहुत्तस्स के वइया उस्सासद्धा विआहिआ?, गो०! असंखिजाणं समयाण समुदयसमिइसमागमेणं सा एगा आवलिअत्ति पवुच्चइ संखिज्जाओ आवलिआओ ऊसासे संखिज्जाओ आवलिआओ नीसासे हदुस्स अणवगलस्स, णिरूवकिट्ठस्स जंतुणो। एगे ऊसासनीसासे, एस पाणुत्ति वुच्चई ॥४॥ सत्त पाणूई से थोवे, सत्त थोवाइं से लवे लवाणं सत्तहत्तरीए, एस मुहुत्तेत्ति आहिए ॥५॥ तिणि सहस्सा सत्त य सयाई तेवत्तरि च ऊसासा। एस मुहत्तो भणिओ सव्वेहिं अणंतनाणीहिं ॥६॥एएणं मुहत्तप्यमाणेणं तीसं मुहुत्ता अहोरत्तो पण्णरस अहोरत्ता पुक्खो दो पक्खा मासो दो मासा उॐ तिण्णि उऊ अयणे दो अयणा संवच्छरे पंचसंवच्छरिए जुगे वीसं जुगाई वाससए दस वाससयाई वाससहस्से सयं वाससहस्साणं वाससयसहस्से चउरासीई वाससयसहस्साई से एगे पुव्वंगे चउरासीई पुव्वंगसयसहस्साई से एगे पुव्वे एवं बिगुणं २ णेअव्वं तुडिए २ अडडे २ अववे २ हूहुए २ उम्पले २ एउमे २ णलिणे २ अच्छिणिउरे २ अउए २ नउए २ ५३१२ चूलिये २ सीसपहेलिए २ जाव चउरासीई || ॥श्री जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only
SR No.021020
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandrasagar
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year2005
Total Pages225
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size15 MB
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