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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जइ वि विउसाण न मणो- रंजगमेयं भविस्सइ तहावि । मत्तो वि मंदमइणो जे तेसिमुवग्गहं काही Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवा सुसिणो, तं सिवम्मि, तं संजमेण, सो देहे, I सो पिडेण, सदोसो सो पडिकुट्ठो, इमे ते य सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाए दोसाओ । दस एसणाए दोसा संजोयणमाइ पंचेव सोहितो य इमे तह जज्ज सव्वत्थ पणगहाणीए । उस्सरसंतता (?) यरिऊ जह चरणगुणा न हायंति सीसो पुच्छइ "भयवं ! नायव्वा सा कहं पणगहाणी ? " | गुरुराह "सुणसु सुंदर! जह भणिया जिणवरिंदेहि समयरकयविमलमइणा(णो), जइणो सुद्धं जिणिदमयरइणो । पिंड सेज्जं वत्थं पत्तं च पुरा गवेसंति सुद्धा संपत्तीए पंचगच्छित्तलच्छियधिईए । तदसंभवे सदसगं तदभावे पंचदसगजुयं तदसइ वीसगसहियं तव्विरहे भिन्नमाससंजुत्तं । तस्ससइ सलहुमासग - मेवं तरतमविभागेण ता नेयं जा च्छग्गुरु मुच्चिस्सं जेण सा तवोभूमी | छत्तीसपयनिबद्धा विण्णेया पणगपणिहाणी तत्तोच्छेओ मूलं अणवटुप्पो य होइ पारिंची। तावत्थोयं पढमं सेविज्जइ लहु गुरु पच्छा जया वट्टियव्वं न हु जयणा जेण भंजए अंगं । एसा जिणाण आणा ताएच्चिय सुज्झए जीवो पुणरवि भइ विणेओ "पच्छित्तं कम्मि कम्मि दोसग्मि । कयरं कयरं भयवं ! भणियं समयम्मि ?" गुरुराह ७८ For Private And Personal Use Only ॥ ३ ॥ 11 8 11 11 4 11 ॥ ६ ॥ || 99 || ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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