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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ५७ ॥ ॥ ५८ ॥ ।। ५९ ॥ ॥६०॥ कयपावो वि मणुस्सो आलोइय निदिय गुरुसगासे। होइ अइरेगलहुओ ओहरियभरो व्व भारवहो आलोइए गुणा खलु वियाणओ मग्गदंसणा चेव । सुहपरिणामो य तहा पुणो अकरणम्मि ववहारो निट्ठवियपावपंका सम्मं आलोइउं गुरुसगासे । पत्ता अणंतजीवा सासयसुवखं अणाबाहं आलोयणमिइ दाउं पडिच्छिउं गुरुविइण्णपच्छित्तं । दाऊण खमासमणं भूनिहियसिरो इमं भणइ छउमंत्थो मूढमणो कित्तियमित्तं पि संभरइ जीवो। इण्हेिं जं न सरामी मिच्छामि दुक्कडं तस्स तत्तो गुरुभणियतवं पच्छित्तविसोहणत्थमणुचरइ । उववासंबिलनिविय-एगासणपुरिमकाउस्सग्गेहि इगभत्तपुरिगनिवियंबिलेहिं चउ बार ति दुहिं उववासो। सज्झायदुसहसेहि य काउसग्गे च उज्जोया आलोयणगहणविही पुव्वायरियप्पणीयगाहाहि । इय एस गिहत्थाणं जिणपहसूरीहिं अक्खाओ ॥ ६१॥ ॥६२॥ ॥६३॥ ॥६४॥ पू.आ.श्री जयसिंहसूरि विरचितम् ॥ पञ्चकपरिहाणिः ॥ सिद्धिसहयार-'मायावणि' भवदव-मयणपडिभडाण कमा । कीरं सीरं नीरं वीरं नमिउं महावीरं वोच्छं पंचगणपरिहाणि-पगरणं पिंडसोहणविहीए। मुणिएण जेण मुणिणो भवंति गीयत्थमुणिमणिणो loc For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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